Samaysar (Hindi).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 8 of 675

 

background image
अमृतमय हुए जिनेश्वरदेवके सुनन्दन गुरुदेवकी ज्ञानकला अब अपूर्व रीतिसे खीलने लगी पूज्य
गुरुदेव ज्यों ज्यों समयसारकी गहराईमें उतरते गये, त्यों त्यों उसमें केवलज्ञानी पितासे बपौतीमें आये
हुए अद्भुत निधान उनके सुपुत्र भगवान् कुन्दकुन्दाचार्यदेवने सावधानीसे सुरक्षित रखे हुए उन्होंने
देखे
अनेक वर्ष तक समयसारका गहराईसे मनन करनेके पश्चात्, ‘किसी भी प्रकारसे जगतके
जीव सर्वज्ञपिताकी इस अमूल्य बपौतीकी कीमत समझे और अनादिकालीन दीनताका अन्त
लाये !’
ऐसी करुणाबुद्धिके कारण पूज्य गुरुदेवश्रीने समयसार पर अपूर्व प्रवचनोंका प्रारम्भ
किया सार्वजनिक सभामें सर्वप्रथम वि. सं. १९९०में राजकोटके चातुर्मासके समय समयसार पर
प्रवचन शुरू किये’’ पूज्य गुरुदेवश्रीने समयसार पर कुल उन्नीस बार प्रवचन दिये हैं सोनगढ़
ट्रस्टकी ओरसे पूज्य गुरुदेवश्रीके समयसार पर प्रवचनोंके पाँच ग्रन्थ छपकर प्रसिद्ध हो गये हैं
पूज्य गुरुदेवश्री अपनी अनुभववाणी द्वारा इस परमागमके गहीर-गम्भीर भाव जैसे जैसे
खोलते गये वैसे वैसे मुमुक्षु जीवोंको उसका महत्त्व समझ़में आता गया, और उनमें
अध्यात्मरसिकताके साथ साथ इस परमागमके प्रति भक्ति एवं बहुमान भी बढ़ते गये
वि. सं.
१९९५के ज्येष्ठ कृष्णा अष्टमीके दिन, सोनगढ़में श्री दिगम्बर जैन स्वाध्यायमन्दिरके उद्धघाटनके
अवसर पर उसमें प्रशममूर्ति भगवती पूज्य बहिनश्री चम्पाबेनके पवित्र करकमलसे श्री समयसार
परमागमकी विधिपूर्वक प्रतिष्ठा
स्थापना की गई थी
ऐसा महिमावन्त यह परमागम गुजराती भाषामें प्रकाशित हो तो जिज्ञासुओंको महान
लाभका कारण होगा ऐसी पूज्य गुरुदेवश्रीकी पवित्र भावनाको झ़ेलकर श्री जैन अतिथि सेवा-
समितिने वि. सं. १९९७में इस परमागमका गुजराती अनुवाद सहित प्रकाशन किया
तत्पश्चात् वि.
सं. २००९में इसकी द्वितीय आवृत्ति, श्रीमद्-अमृतचन्द्रसूरि विरचित ‘आत्मख्याति’ संस्कृत टीका
सहित, श्री दिगम्बर जैन स्वाध्यायमन्दिर ट्रस्ट, सोनगढ़की ओरसे प्रकाशित की गई थी
उसी
गुजराती अनुवादके हिन्दी रूपान्तरका यह आठवाँ संस्करण है
इसप्रकार परमागम श्री समयसारका गुजराती एवं हिन्दी प्रकाशन वास्तवमें पूज्य
गुरुदेवश्रीके प्रभावका ही प्रसाद है अध्यात्मका रहस्य समझ़ाकर पूज्य गुरुदेवश्रीने जो अपार
उपकार किया है उसका वर्णन वाणीके द्वारा व्यक्त करनेमें यह संस्था असमर्थ है
श्रीमान् समीप समयवर्ती समयज्ञ श्रीमद् राजचन्द्रजीने जनसमाजको अध्यात्म समझ़ाया तथा
अध्यात्मप्रचारके लिये श्री परमश्रुतप्रभावक मंडलका स्थापन किया; इसप्रकार जनसमाज पर
मुख्यत्वे गुजरात-सौराष्ट्र परउनका महान उपकार प्रवर्तमान है
अब गुजराती अनुवादके विषयमें :इस उच्च कोटिके अध्यात्मशास्त्रका गुजराती अनुवाद
करनेका काम सरल न था गाथासूत्रकार एवं टीकाकार आचार्यभगवन्तोंके गम्भीर भाव यथार्थतया
[६ ]