Samaysar (Hindi). Kalash: 17-19.

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समयसार
[ भगवानश्रीकुन्दकुन्द-
(अनुष्टुभ्)
दर्शनज्ञानचारित्रैस्त्रिभिः परिणतत्वतः
एकोऽपि त्रिस्वभावत्वाद्वयवहारेण मेचकः ।।१७।।
(अनुष्टुभ्)
परमार्थेन तु व्यक्तज्ञातृत्वज्योतिषैककः
सर्वभावान्तरध्वंसिस्वभावत्वादमेचकः ।।१८।।
(अनुष्टुभ्)
आत्मनश्चिन्तयैवालं मेचकामेचकत्वयोः
दर्शनज्ञानचारित्रैः साध्यसिद्धिर्न चान्यथा ।।१९।।

श्लोकार्थ :[एकः अपि ] आत्मा एक है, तथापि [व्यवहारेण ] व्यवहारदृष्टिसे देखा जाय तो [त्रिस्वभावत्वात् ] तीन-स्वभावरूपताके कारण [मेचकः ] अनेकाकाररूप (‘मेचक’) है, [दर्शन-ज्ञान-चारित्रैः त्रिभिः परिणतत्वतः ] क्योंकि वह दर्शन, ज्ञान और चारित्रइन तीन भावोंरूप परिणमन करता है

भावार्थ :शुद्धद्रव्यार्थिक नयसे आत्मा एक है; जब इस नयको प्रधान करके कहा जाता है तब पर्यायार्थिक नय गौण हो जाता है, इसलिए एकको तीनरूप परिणमित होता हुआ कहना सो व्यवहार हुआ, असत्यार्थ भी हुआ इसप्रकार व्यवहारनयसे आत्माको दर्शन, ज्ञान, चारित्ररूप परिणामोंके कारण ‘मेचक’ कहा है ।१७।

अब, परमार्थनयसे कहते हैं :

श्लोकार्थ :[परमार्थेन तु ] शुद्ध निश्चयनयसे देखा जाये तो [व्यक्त -ज्ञातृत्व-ज्योतिषा ] प्रगट ज्ञायकत्वज्योतिमात्रसे [एककः ] आत्मा एकस्वरूप है, [सर्व-भावान्तर-ध्वंसि-स्वभावत्वात् ] क्योंकि शुद्धद्रव्यार्थिक नयसे सर्व अन्यद्रव्यके स्वभाव तथा अन्यके निमित्तसे होनेवाले विभावोंको दूर करनेरूप उसका स्वभाव है, इसलिये वह [अमेचकः ] ‘अमेचक’ हैशुद्ध एकाकार है

भावार्थ :भेददृष्टिको गौण करके अभेददृष्टिसे देखा जाये तो आत्मा एकाकार ही है, वही अमेचक है ।१८।

आत्माको प्रमाण-नयसे मेचक, अमेचक कहा है, उस चिन्ताको मिटाकर जैसे साध्यकी सिद्धि हो वैसा करना चाहिए, यह आगेके श्लोकमें कहते हैं :

श्लोकार्थ :[आत्मनः ] यह आत्मा [मेचक-अमेचकत्वयोः ] मेचक हैभेदरूप