खंडान्वय सहित अर्थः — ‘‘भावाय नमः’’ (भावाय) पदार्थ. पदार्थ संज्ञा छे सत्त्वस्वरूपनी. एथी आ अर्थ ठर्यो — जे कोई शाश्वत वस्तुरूप, तेने मारा (नमः) नमस्कार. ते वस्तुरूप केवुं छे? ‘‘चित्स्वभावाय’’ (चित्) ज्ञान – चेतना ते ज छे (स्वभावाय) स्वभाव – सर्वस्व जेनुं, तेने मारा नमस्कार. आ विशेषण कहेतां बे समाधान थाय छेः — एक तो ‘भाव’ कहेतां पदार्थ; ते पदार्थ कोई चेतन छे, कोई अचेतन छे; तेमां चेतन पदार्थ नमस्कार करवा योग्य छे एवो अर्थ ऊपजे छे. बीजुं समाधान आम छे के यद्यपि वस्तुनो गुण वस्तुमां गर्भित छे, वस्तु गुण एक ज सत्त्व छे, तथापि भेद उपजावीने कहेवा योग्य छे; विशेषण कह्या विना वस्तुनुं ज्ञान ऊपजतुं नथी. वळी केवो छे ‘भाव’? ‘‘समयसाराय’’ जोके ‘समय’ शब्दना घणा अर्थ