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छे तोपण आ अवसरे ‘समय’ शब्दथी सामान्यपणे जीवादि सकळ पदार्थ जाणवा. तेमां जे कोई ‘सार’ छे, ‘सार’ कहेतां उपादेय छे जीववस्तु, तेने मारा नमस्कार. आ विशेषणनो आ भावार्थ छे – सार पदार्थ जाणी चेतन पदार्थने नमस्कार प्रमाण राख्या; असारपणुं जाणी अचेतन पदार्थने नमस्कार निषेध्या. हवे कोई वितर्क करे के ‘बधाय पदार्थ पोतपोताना गुणपर्याये विराजमान छे, स्वाधीन छे, कोई कोईने आधीन नथी; तो जीव पदार्थने सारपणुं कई रीते घटे छे?’ तेनुं समाधान करवा माटे बे विशेषण कहे छेः – वळी केवो छे ‘भाव’? ‘‘स्वानुभूत्या चकासते, सर्वभावान्तरच्छिदे’’ (स्वानुभूत्या) आ अवसरे ‘स्वानुभूति’ कहेतां निराकुलत्व-लक्षण शुद्धात्मपरिणमनरूप अतीन्द्रिय सुख जाणवुं, ते-रूपे (चकासते) अवस्था छे जेनी; (सर्वभावान्तरच्छिदे) ‘सर्व भाव’ अर्थात् अतीत-अनागत-वर्तमान पर्याय सहित अनन्त गुणे विराजमान जेटला जीवादि पदार्थ, तेनी ‘अन्तरछेदी’ अर्थात् एक समयमां युगपद् प्रत्यक्षरूपे जाणनशील जे कोई शुद्ध जीववस्तु, तेने मारा नमस्कार. शुद्ध जीवने ‘सार’पणुं घटे छे. सार अर्थात् हितकारी, असार अर्थात् अहितकारी. त्यां हितकारी सुख जाणवुं, अहितकारी दुःख जाणवुं; कारण के अजीव पदार्थने — पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश, काळने — अने संसारी जीवने सुख नथी, ज्ञान पण नथी, अने तेमनुं स्वरूप जाणतां जाणनहार जीवने पण सुख नथी, ज्ञान पण नथी, तेथी तेमने ‘सार’पणुं घटतुं नथी. शुद्ध जीवने सुख छे, ज्ञान पण छे, तेने जाणतां — अनुभवतां जाणनहारने सुख छे, ज्ञान पण छे, तेथी शुद्ध जीवने ‘सार’पणुं घटे छे. १.
खंडान्वय सहित अर्थः — ‘‘नित्यमेव प्रकाशताम्’’ (नित्यं) सदा – त्रिकाळ (प्रकाशताम्) प्रकाश करो; एटलुं कही नमस्कार कर्या. ते कोण? ‘‘अनेकान्तमयी मूर्तिः’’ (अनेकान्तमयी) ‘न एकान्तः अनेकान्तः’ अनेकान्त अर्थात् स्याद्वाद, ते-मय अर्थात् ते ज छे (मूर्तिः) स्वरूप जेनुं, एवी छे सर्वज्ञनी वाणी अर्थात् दिव्यध्वनि. आ अवसरे आशंका ऊपजे छे — कोई जाणशे के अनेकान्त तो संशय छे, संशय