कहानजैनशास्त्रमाळा ]
मिथ्या छे. तेनुं आम समाधान करवुं — अनेकान्त तो संशयनो दूरीकरणशील छे अने वस्तुस्वरूपनो साधनशील छे. तेनुं विवरण — जे कोई सत्तास्वरूप वस्तु छे ते द्रव्य-गुणात्मक छे, तेमां जे सत्ता अभेदपणे द्रव्यरूप कहेवाय छे ते ज सत्ता भेदपणे गुणरूप कहेवाय छे; आनुं नाम अनेकान्त छे. वस्तुस्वरूप अनादिनिधन आवुं ज छे, कोईनो सहारो नथी, तेथी ‘अनेकान्त’ प्रमाण छे. हवे जे वाणीने नमस्कार कर्या ते वाणी केवी छे?
वीतराग, [तेनुं विवरण — ‘प्रत्यक्’ अर्थात् भिन्न; भिन्न अर्थात् द्रव्यकर्म-भावकर्म- नोकर्मथी रहित, एवो छे ‘आत्मा’ आत्मा ( – जीवद्रव्य) जेनो ते कहेवाय छे ‘प्रत्यगात्मा’,] तेनुं (तत्त्वं) स्वरूप, तेनी (पश्यन्ती) अनुभवनशील छे. भावार्थ आम छे — कोई वितर्क करे के दिव्यध्वनि तो पुद्गलात्मक छे, अचेतन छे, अचेतनने नमस्कार निषिद्ध छे. तेनुं समाधान करवाने माटे आ अर्थ कह्यो के वाणी सर्वज्ञस्वरूप-अनुसारिणी छे, एवुं मान्या विना पण चाले नहि. तेनुं विवरण — वाणी तो अचेतन छे. तेने सांभळतां जीवादि पदार्थनुं स्वरूपज्ञान जे प्रकारे ऊपजे छे ते ज प्रकारे जाणवुं के वाणीनुं पूज्यपणुं पण छे. केवा छे सर्वज्ञ वीतराग? ‘‘अनन्तधर्मणः’’ (अनन्त) अति घणा छे (धर्मणः) गुणो जेमने एवा छे. भावार्थ आम छे — कोई मिथ्यावादी कहे छे के परमात्मा निर्गुण छे, गुणनो विनाश थतां परमात्मपणुं थाय छे; परंतु एवुं मानवुं जूठुं छे, कारण के गुणोनो विनाश थतां द्रव्यनो पण विनाश छे. २.
दविरतमनुभाव्यव्याप्तिकल्माषितायाः ।
र्भवतु समयसारव्याख्ययैवानुभूतेः ।।३।।
खंडान्वय सहित अर्थः — ‘‘मम परमविशुद्धिः भवतु’’ शास्त्रकर्ता छे अमृतचंद्रसूरि. तेओ कहे छे — (मम) मने (परमविशुद्धिः) शुद्धस्वरूपप्राप्ति (तेनुं विवरण — परम – सर्वोत्कृष्ट विशुद्धि – निर्मलता) (भवतु) थाओ. शाथी?