Samaysar Kalash Tika-Gujarati (Devanagari transliteration). Shlok: 3.

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कहानजैनशास्त्रमाळा ]

जीव-अधिकार

मिथ्या छे. तेनुं आम समाधान करवुंअनेकान्त तो संशयनो दूरीकरणशील छे अने वस्तुस्वरूपनो साधनशील छे. तेनुं विवरणजे कोई सत्तास्वरूप वस्तु छे ते द्रव्य-गुणात्मक छे, तेमां जे सत्ता अभेदपणे द्रव्यरूप कहेवाय छे ते ज सत्ता भेदपणे गुणरूप कहेवाय छे; आनुं नाम अनेकान्त छे. वस्तुस्वरूप अनादिनिधन आवुं ज छे, कोईनो सहारो नथी, तेथी ‘अनेकान्त’ प्रमाण छे. हवे जे वाणीने नमस्कार कर्या ते वाणी केवी छे?

‘‘प्रत्यगात्मनस्तत्त्वं पश्यन्ती’’ (प्रत्यगात्मनः) सर्वज्ञ

वीतराग, [तेनुं विवरण‘प्रत्यक्’ अर्थात् भिन्न; भिन्न अर्थात् द्रव्यकर्म-भावकर्म- नोकर्मथी रहित, एवो छे ‘आत्मा’ आत्मा (जीवद्रव्य) जेनो ते कहेवाय छे ‘प्रत्यगात्मा’,] तेनुं (तत्त्वं) स्वरूप, तेनी (पश्यन्ती) अनुभवनशील छे. भावार्थ आम छेकोई वितर्क करे के दिव्यध्वनि तो पुद्गलात्मक छे, अचेतन छे, अचेतनने नमस्कार निषिद्ध छे. तेनुं समाधान करवाने माटे आ अर्थ कह्यो के वाणी सर्वज्ञस्वरूप-अनुसारिणी छे, एवुं मान्या विना पण चाले नहि. तेनुं विवरण वाणी तो अचेतन छे. तेने सांभळतां जीवादि पदार्थनुं स्वरूपज्ञान जे प्रकारे ऊपजे छे ते ज प्रकारे जाणवुं के वाणीनुं पूज्यपणुं पण छे. केवा छे सर्वज्ञ वीतराग? ‘‘अनन्तधर्मणः’’ (अनन्त) अति घणा छे (धर्मणः) गुणो जेमने एवा छे. भावार्थ आम छेकोई मिथ्यावादी कहे छे के परमात्मा निर्गुण छे, गुणनो विनाश थतां परमात्मपणुं थाय छे; परंतु एवुं मानवुं जूठुं छे, कारण के गुणोनो विनाश थतां द्रव्यनो पण विनाश छे. २.

(मालिनी)
परपरिणतिहेतोर्मोहनाम्नोऽनुभावा-
दविरतमनुभाव्यव्याप्तिकल्माषितायाः
मम परमविशुद्धिः शुद्धचिन्मात्रमूर्ते-
र्भवतु समयसारव्याख्ययैवानुभूतेः
।।।।

खंडान्वय सहित अर्थः‘‘मम परमविशुद्धिः भवतु’’ शास्त्रकर्ता छे अमृतचंद्रसूरि. तेओ कहे छे(मम) मने (परमविशुद्धिः) शुद्धस्वरूपप्राप्ति (तेनुं विवरणपरमसर्वोत्कृष्ट विशुद्धिनिर्मलता) (भवतु) थाओ. शाथी?