Samaysar Kalash Tika-Gujarati (Devanagari transliteration). Shlok: 5.

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समयसार-कलश
[ भगवानश्रीकुंदकुंद-

ते जीव संसारमां भमतां भमतां ज्यारे अर्धपुद्गलपरावर्तनमात्र रहे छे त्यारे ज सम्यक्त्व ऊपजवाने योग्य छे. आनुं नाम काळलब्धि कहेवाय छे. यद्यपि सम्यक्त्वरूप जीवद्रव्य परिणमे छे तथापि काळलब्धि विना करोड उपाय जो करवामां आवे तोपण जीव सम्यक्त्वरूप परिणमनने योग्य नथी एवो नियम छे. आथी जाणवुं के सम्यक्त्व-वस्तु यत्नसाध्य नथी, सहजरूप छे. ४.

(मालिनी)
व्यवहरणनयः स्याद्यद्यपि प्राक्पदव्या-
मिह निहितपदानां हन्त हस्तावलम्बः
तदपि परममर्थं चिच्चमत्कारमात्रं
परविरहितमन्तः पश्यतां नैष किञ्चित्
।।।।

खंडान्वय सहित अर्थः‘‘व्यवहरणनयः यद्यपि हस्तावलम्बः स्यात्’’ (व्यवहरणनयः) जेटलुं कथन. तेनुं विवरणजीववस्तु निर्विकल्प छे. ते तो ज्ञानगोचर छे. ते ज जीववस्तुने कहेवा मागे, त्यारे एम ज कहेवामां आवे छे के जेना गुण दर्शन-ज्ञान-चारित्र ते जीव. जो कोई बहु साधिक (-अधिक बुद्धिमान) होय तोपण आम ज कहेवुं पडे. आटलुं कहेवानुं नाम व्यवहार छे. अहीं कोई आशंका करशे के वस्तु निर्विकल्प छे, तेमां विकल्प उपजाववो अयुक्त छे. त्यां समाधान आम छे के व्यवहारनय हस्तावलम्ब छे. (हस्तावलम्बः) जेवी रीते कोई नीचे पड्यो होय तो हाथ पकडीने (तेने) ऊंचो ले छे तेवी ज रीते गुण-गुणीरूप भेदकथन ज्ञान ऊपजवानुं एक अंग छे. तेनुं विवरण‘जीवनुं लक्षण चेतना’ एटलुं कहेतां पुद्गलादि अचेतन द्रव्यथी भिन्नपणानी प्रतीति ऊपजे छे. तेथी ज्यारे अनुभव थाय त्यां सुधी गुण-गुणीभेदरूप कथन ज्ञाननुं अंग छे. व्यवहारनय जेमने हस्तावलम्ब छे तेओ केवा छे? ‘‘प्राक्पदव्यामिह निहितपदानां’’ (इह) विद्यमान एवी जे (प्राक्पदव्याम्) ज्ञान ऊपजतां प्रारंभिक अवस्था, तेमां (निहितपदानां) निहितस्थापेल छे पदसर्वस्व जेमणे, एवा छे. भावार्थ आम छेजे कोई सहजपणे अज्ञानी छे, जीवादि पदार्थोनुं द्रव्य-गुण-पर्यायस्वरूप जाणवाना अभिलाषी छे, तेमना माटे