कहानजैनशास्त्रमाळा ]
खंडान्वय सहित अर्थः — ‘‘ते समयसारं ईक्षन्ते एव’’ (ते) आसन्नभव्य जीवो (समयसारं) शुद्ध जीवने (ईक्षन्ते एव) प्रत्यक्षपणे पामे छे. ‘‘सपदि’’ थोडा ज काळमां. केवो छे शुद्ध जीव? ‘‘उच्चैः परं ज्योतिः’’ अतिशयमान ज्ञानज्योति छे. वळी केवो छे? ‘‘अनवम्’’ अनादिसिद्ध छे. वळी केवो छे? ‘‘अनयपक्षाक्षुण्णम्’’ (अनयपक्ष) मिथ्यावादथी (अक्षुण्णम्) अखंडित छे. भावार्थ आम छे — मिथ्यावादी बौद्धादि जूठी कल्पना घणा प्रकारे करे छे, तोपण तेओ ज जूठा छे; आत्मतत्त्व जेवुं छे तेवुं ज छे. हवे ते भव्य जीवो शुं करता थका शुद्ध स्वरूप पामे छे, ते ज कहे छे — ‘‘ये जिनवचसि रमन्ते’’ (ये) आसन्नभव्य जीवो (जिनवचसि) दिव्यध्वनि द्वारा कही छे उपादेयरूप शुद्ध जीववस्तु तेमां (रमन्ते) सावधानपणे रुचि-श्रद्धा-प्रतीति करे छे. विवरण — शुद्ध जीववस्तुनो प्रत्यक्षपणे अनुभव करे छे तेनुं नाम रुचि-श्रद्धा – प्रतीति छे. भावार्थ आम छे — वचन पुद्गल छे, तेनी रुचि करतां स्वरूपनी प्राप्ति नथी; तेथी वचन द्वारा कहेवामां आवे छे जे कोई उपादेय वस्तु, तेनो अनुभव करतां फळप्राप्ति छे. केवुं छे जिनवचन? ‘‘उभयनयविरोधध्वंसिनि’’ (उभय) बे (नय) पक्षपातने (विरोध) परस्पर वैरभाव, [विवरण — एक सत्त्वने द्रव्यार्थिकनय द्रव्यरूप, ते ज सत्त्वने पर्यायार्थिकनय पर्यायरूप कहे छे, तेथी परस्पर विरोध छे;] तेनुं (ध्वंसिनि) मेटनशील छे. भावार्थ आम छे — बन्ने नय विकल्प छे, शुद्ध जीवस्वरूपनो अनुभव निर्विकल्प छे, तेथी शुद्ध जीववस्तुनो अनुभव थतां बंने नयविकल्प जूठा छे. वळी केवुं छे जिनवचन? ‘‘स्यात्पदाङ्के’’ (स्यात्पद) स्याद्वाद अर्थात् अनेकान्त — जेनुं स्वरूप पाछळ कह्युं छे — ते ज छे (अङ्के) चिह्न जेनुं, एवुं छे. भावार्थ आम छे — जे कोई वस्तुमात्र छे ते तो निर्भेद छे. ते वस्तुमात्र वचन द्वारा कहेतां जे कोई वचन बोलाय छे ते ज पक्षरूप छे. केवा छे आसन्नभव्य जीव? ‘‘स्वयं वान्तमोहाः’’ (स्वयं) सहजपणे (वान्त) वमी नाख्युं छे. (मोहाः) मिथ्यात्व – विपरीतपणुं, एवा छे. भावार्थ आम छे — अनंत संसार जीवोने भमतां थकां जाय छे. ते संसारी जीव एक भव्यराशि छे, एक अभव्यराशि छे. तेमां अभव्यराशि जीव त्रणे काळ मोक्ष जवाने अधिकारी नथी. भव्य जीवोमां केटलाक जीवो मोक्ष जवाने योग्य छे. तेमने मोक्ष पहोंचवानुं काळपरिमाण छे. विवरण — आ जीव आटलो काळ वीततां मोक्ष जशे एवी नोंध केवळज्ञानमां छे.