Samaysar Kalash Tika-Gujarati (Devanagari transliteration). Shlok: 7.

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८ ]

समयसार-कलश
[ भगवानश्रीकुंदकुंद-

प्रत्यक्षपणे तेनो अनुभव, (एतदेव) ते ज (नियमात्) निश्चयथी (सम्यग्दर्शनम्) सम्यग्दर्शन छे. भावार्थ आम छेसम्यग्दर्शन जीवनो गुण छे. ते गुण संसार- अवस्थामां विभावरूप परिणम्यो छे; ते ज गुण ज्यारे स्वभावरूप परिणमे त्यारे मोक्षमार्ग छे. विवरणसम्यक्त्वभाव थतां नूतन ज्ञानावरणादि द्रव्य-कर्मास्रव मटे छे, पूर्वबद्ध कर्म निर्जरे छे; तेथी मोक्षमार्ग छे. अहीं कोई आशंका करशे के मोक्षमार्ग सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र ए त्रणेना मळवाथी थाय छे. उत्तर आम छेशुद्ध जीवस्वरूप अनुभवतां त्रणेय छे. केवो छे शुद्ध जीव? ‘‘शुद्धनयतः एकत्वे नियतस्य’’ (शुद्धनयतः) निर्विकल्प वस्तुमात्रनी द्रष्टिथी जोतां (एकत्वे) शुद्धपणुं (नियतस्य) ते-रूप छे. भावार्थ आम छेजीवनुं लक्षण चेतना छे. ते चेतना त्रण प्रकारनी छेएक ज्ञानचेतना, एक कर्मचेतना, एक कर्मफळचेतना. तेमां ज्ञानचेतना शुद्ध चेतना छे, बाकीनी अशुद्ध चेतना छे. तेमां अशुद्ध चेतनारूप वस्तुनो स्वाद सर्व जीवोने अनादिनो प्रगट ज छे; ते-रूप अनुभव सम्यक्त्व नथी. शुद्ध चेतनामात्र वस्तुस्वरूपनो आस्वाद आवे तो सम्यक्त्व छे. ××× वळी केवी छे जीववस्तु? ‘‘व्याप्तुः’’ पोताना गुण-पर्यायो सहित छे. आटलुं कहीने शुद्धपणुं द्रढ कर्युं छे. कोई आशंका करशे के सम्यक्त्वगुण अने जीववस्तुनो भेद छे के अभेद छे? उत्तर आम छे के अभेद छे‘‘आत्मा च तावानयम्’’ (अयम्)(आत्मा) जीववस्तु (तावान्) सम्यक्त्वगुणमात्र छे. ६.

(अनुष्टुप)
अतः शुद्धनयायत्तं प्रत्यग्ज्योतिश्चकास्ति तत्
नवतत्त्वगतत्वेऽपि यदेकत्वं न मुञ्चति ।।।।

खंडान्वय सहित अर्थः‘‘अतः तत् प्रत्यग्ज्योतिश्चकास्ति’’ (अतः) अहींथी हवे (तत्) ते ज (प्रत्यग्ज्योतिः) शुद्ध चेतनामात्र वस्तु (चकास्ति) शब्दो द्वारा युक्तिथी कहेवामां आवे छे. केवी छे वस्तु? ‘‘शुद्धनयायत्तं’’ (शुद्धनय) वस्तुमात्रने (आयत्तं)

* पंडित श्री राजमलजी कृत टीकामां अहीं ‘‘पूर्णज्ञानघनस्य’’ पदनो अर्थ करवो रही गयो छे, जे अर्थ आ प्रमाणे करी शकायःवळी केवो छे शुद्ध जीव? ‘‘पूर्णज्ञानघनस्य’’ पूर्ण स्व- परग्राहकशक्तिनो पुंज छे.