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प्रत्यक्षपणे तेनो अनुभव, (एतदेव) ते ज (नियमात्) निश्चयथी (सम्यग्दर्शनम्) सम्यग्दर्शन छे. भावार्थ आम छे — सम्यग्दर्शन जीवनो गुण छे. ते गुण संसार- अवस्थामां विभावरूप परिणम्यो छे; ते ज गुण ज्यारे स्वभावरूप परिणमे त्यारे मोक्षमार्ग छे. विवरण — सम्यक्त्वभाव थतां नूतन ज्ञानावरणादि द्रव्य-कर्मास्रव मटे छे, पूर्वबद्ध कर्म निर्जरे छे; तेथी मोक्षमार्ग छे. अहीं कोई आशंका करशे के मोक्षमार्ग सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र ए त्रणेना मळवाथी थाय छे. उत्तर आम छे — शुद्ध जीवस्वरूप अनुभवतां त्रणेय छे. केवो छे शुद्ध जीव? ‘‘शुद्धनयतः एकत्वे नियतस्य’’ (शुद्धनयतः) निर्विकल्प वस्तुमात्रनी द्रष्टिथी जोतां (एकत्वे) शुद्धपणुं (नियतस्य) ते-रूप छे. भावार्थ आम छे — जीवनुं लक्षण चेतना छे. ते चेतना त्रण प्रकारनी छे – एक ज्ञानचेतना, एक कर्मचेतना, एक कर्मफळचेतना. तेमां ज्ञानचेतना शुद्ध चेतना छे, बाकीनी अशुद्ध चेतना छे. तेमां अशुद्ध चेतनारूप वस्तुनो स्वाद सर्व जीवोने अनादिनो प्रगट ज छे; ते-रूप अनुभव सम्यक्त्व नथी. शुद्ध चेतनामात्र वस्तुस्वरूपनो आस्वाद आवे तो सम्यक्त्व छे.✽ ××× वळी केवी छे जीववस्तु? ‘‘व्याप्तुः’’ पोताना गुण-पर्यायो सहित छे. आटलुं कहीने शुद्धपणुं द्रढ कर्युं छे. कोई आशंका करशे के सम्यक्त्वगुण अने जीववस्तुनो भेद छे के अभेद छे? उत्तर आम छे के अभेद छे — ‘‘आत्मा च तावानयम्’’ (अयम्) आ (आत्मा) जीववस्तु (तावान्) सम्यक्त्वगुणमात्र छे. ६.
खंडान्वय सहित अर्थः — ‘‘अतः तत् प्रत्यग्ज्योतिश्चकास्ति’’ (अतः) अहींथी हवे (तत्) ते ज (प्रत्यग्ज्योतिः) शुद्ध चेतनामात्र वस्तु (चकास्ति) शब्दो द्वारा युक्तिथी कहेवामां आवे छे. केवी छे वस्तु? ‘‘शुद्धनयायत्तं’’ (शुद्धनय) वस्तुमात्रने (आयत्तं)
* पंडित श्री राजमलजी कृत टीकामां अहीं ‘‘पूर्णज्ञानघनस्य’’ पदनो अर्थ करवो रही गयो छे, जे अर्थ आ प्रमाणे करी शकायः — वळी केवो छे शुद्ध जीव? ‘‘पूर्णज्ञानघनस्य’’ पूर्ण स्व- परग्राहकशक्तिनो पुंज छे.