Samaysar Kalash Tika-Gujarati (Devanagari transliteration). Shlok: 8.

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कहानजैनशास्त्रमाळा ]

जीव-अधिकार

आधीन छे. भावार्थ आम छेजेने अनुभवतां सम्यक्त्व थाय छे ते शुद्ध स्वरूपने कहे छेः‘‘यदेकत्वं न मुञ्चति’’ (यत्) जे शुद्ध वस्तु (एकत्वं) शुद्धपणाने (न मुञ्चति) नथी छोडती. अहीं कोई आशंका करशे के जीववस्तु ज्यारे संसारथी छूटे छे त्यारे शुद्ध थाय छे. उत्तर आम छेजीववस्तु द्रव्यद्रष्टिए विचारतां त्रणे काळ शुद्ध छे. ते ज कहे छे‘‘नवतत्त्वगतत्वेऽपि’’ (नवतत्त्व) जीव-अजीव-आस्रव-बंध-संवर-निर्जरा- मोक्ष-पुण्य-पाप (गतत्वे अपि) ते-रूप परिणमी छे तोपण शुद्धस्वरूप छे. भावार्थ आम छेजेम अग्नि दाहकलक्षण छे, ते काष्ठ, तृण, छाणां आदि समस्त दाह्यने दहे छे, दहतो थको अग्नि दाह्याकार थाय छे; परंतु तेनो विचार छे के जो तेने काष्ठ, तृण अने छाणानी आकृतिमां जोवामां आवे तो काष्ठनो अग्नि, तृणनो अग्नि अने छाणानो अग्नि एम कहेवुं साचुं ज छे, अने जो अग्निनी उष्णतामात्र विचारवामां आवे तो उष्णमात्र छे, काष्ठनो अग्नि, तृणनो अग्नि अने छाणानो अग्नि एवा समस्त विकल्प जूठा छे; तेवी ज रीते नव तत्त्वरूप जीवना परिणामो छे, ते परिणामो केटलाक शुद्धरूप छे, केटलाक अशुद्धरूप छे; जो नव परिणामोमां ज जोवामां आवे तो नवे तत्त्व साचां छे अने जो चेतनामात्र अनुभव करवामां आवे तो नवे विकल्प जूठा छे. ७.

(मालिनी)
चिरमिति नवतत्त्वच्छन्नमुन्नीयमानं
कनकमिव निमग्नं वर्णमालाकलापे
अथ सततविविक्तं द्रश्यतामेकरूपं
प्रतिपदमिदमात्मज्योतिरुद्योतमानम् ।।।।

खंडान्वय सहित अर्थः‘‘आत्मज्योतिः द्रश्यताम्’’ (आत्मज्योतिः) आत्म- ज्योति अर्थात् जीवद्रव्यनुं शुद्ध ज्ञानमात्र (द्रश्यताम्) सर्वथा अनुभवरूप हो. केवी छे आत्मज्योति? ‘‘चिरमिति नवतत्त्वच्छन्नं, अथ सततविविक्तं’’ आ अवसरे नाट्यरसनी पेठे एक जीववस्तु आश्चर्यकारी अनेक भावरूप एक ज समये देखाय छे; ए ज कारणथी आ शास्त्रनुं नाम नाटक समयसार छे. ते ज कहे छे(चिरम्)