कहानजैनशास्त्रमाळा ]
आधीन छे. भावार्थ आम छे — जेने अनुभवतां सम्यक्त्व थाय छे ते शुद्ध स्वरूपने कहे छेः — ‘‘यदेकत्वं न मुञ्चति’’ (यत्) जे शुद्ध वस्तु (एकत्वं) शुद्धपणाने (न मुञ्चति) नथी छोडती. अहीं कोई आशंका करशे के जीववस्तु ज्यारे संसारथी छूटे छे त्यारे शुद्ध थाय छे. उत्तर आम छे — जीववस्तु द्रव्यद्रष्टिए विचारतां त्रणे काळ शुद्ध छे. ते ज कहे छे — ‘‘नवतत्त्वगतत्वेऽपि’’ (नवतत्त्व) जीव-अजीव-आस्रव-बंध-संवर-निर्जरा- मोक्ष-पुण्य-पाप (गतत्वे अपि) ते-रूप परिणमी छे तोपण शुद्धस्वरूप छे. भावार्थ आम छे – जेम अग्नि दाहकलक्षण छे, ते काष्ठ, तृण, छाणां आदि समस्त दाह्यने दहे छे, दहतो थको अग्नि दाह्याकार थाय छे; परंतु तेनो विचार छे के जो तेने काष्ठ, तृण अने छाणानी आकृतिमां जोवामां आवे तो काष्ठनो अग्नि, तृणनो अग्नि अने छाणानो अग्नि एम कहेवुं साचुं ज छे, अने जो अग्निनी उष्णतामात्र विचारवामां आवे तो उष्णमात्र छे, काष्ठनो अग्नि, तृणनो अग्नि अने छाणानो अग्नि एवा समस्त विकल्प जूठा छे; तेवी ज रीते नव तत्त्वरूप जीवना परिणामो छे, ते परिणामो केटलाक शुद्धरूप छे, केटलाक अशुद्धरूप छे; जो नव परिणामोमां ज जोवामां आवे तो नवे तत्त्व साचां छे अने जो चेतनामात्र अनुभव करवामां आवे तो नवे विकल्प जूठा छे. ७.
कनकमिव निमग्नं वर्णमालाकलापे ।
खंडान्वय सहित अर्थः — ‘‘आत्मज्योतिः द्रश्यताम्’’ (आत्मज्योतिः) आत्म- ज्योति अर्थात् जीवद्रव्यनुं शुद्ध ज्ञानमात्र (द्रश्यताम्) सर्वथा अनुभवरूप हो. केवी छे आत्मज्योति? ‘‘चिरमिति नवतत्त्वच्छन्नं, अथ सततविविक्तं’’ आ अवसरे नाट्यरसनी पेठे एक जीववस्तु आश्चर्यकारी अनेक भावरूप एक ज समये देखाय छे; ए ज कारणथी आ शास्त्रनुं नाम नाटक समयसार छे. ते ज कहे छे — (चिरम्)