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अमर्याद काळथी (इति) जो विभावरूप रागादि परिणाम – पर्यायमात्र विचारवामां आवे तो ज्ञानवस्तु (नवतत्त्वच्छन्नं) पूर्वोक्त जीवादि नव तत्त्वरूपे आच्छादित छे. भावार्थ आम छे के जीववस्तु अनादि काळथी धातु अने पाषाणना संयोगनी पेठे कर्म-पर्याय साथे मळेली ज चाली आवे छे अने मळी थकी ते रागादि विभावपरिणामो साथे व्याप्य – व्यापकरूपे स्वयं परिणमे छे. ते परिणमन जोवामां आवे, जीवनुं स्वरूप न जोवामां आवे, तो जीववस्तु नव तत्त्वरूप छे एम द्रष्टिमां आवे छे; आवुं पण छे, सर्वथा जूठुं नथी, केम के विभावरूप रागादि परिणामशक्ति जीवमां ज छे. ‘‘अथ’’ हवे ‘अथ’ पद द्वारा बीजो पक्ष बतावे छेः — ते ज जीववस्तु द्रव्यरूप छे, पोताना गुण-पर्याये विराजमान छे. जो शुद्ध द्रव्यस्वरूप जोवामां आवे, पर्यायस्वरूप न जोवामां आवे तो ते केवी छे? ‘‘सततविविक्तम्’’ (सतत) निरंतर (विविक्तं) नव तत्त्वना विकल्पथी रहित छे, शुद्ध वस्तुमात्र छे. भावार्थ आम छे के शुद्ध स्वरूपनो अनुभव सम्यक्त्व छे. वळी केवी छे ते आत्मज्योति? ‘‘वर्णमालाकलापे कनकमिव निमग्नं’’ ‘वर्णमाला’ पदना बे अर्थ छे — एक तो १बनवारी, अने बीजो भेदपंक्ति; भावार्थ आम छे के गुण-गुणीना भेदरूप भेदप्रकाश; ‘कलाप’नो अर्थ समूह छे. आथी एम अर्थ ऊपज्यो के जेम एक ज सोनुं २वानभेदथी अनेकरूप कहेवाय छे तेम एक ज जीववस्तु द्रव्य-गुण- पर्यायरूपे अथवा उत्पाद-व्यय-ध्रौव्यरूपे अनेकरूप कहेवाय छे. ‘अथ’ हवे ‘अथ’ पद द्वारा फरीने बीजो पक्ष बतावे छेः — ‘‘प्रतिपदम् एकरूपं’’ (प्रतिपदम्) गुण- पर्यायरूप अथवा उत्पाद-व्यय-ध्रौव्यरूप अथवा द्रष्टांतनी अपेक्षाए वानभेदरूप जेटला भेदो छे ते बधा भेदोमां पण (एकरूपं) पोते (एक) ज छे. वस्तुनो विचार करतां भेदरूप पण वस्तु ज छे, वस्तुथी भिन्न भेद कोई वस्तु नथी. भावार्थ आम छे के सुवर्णमात्र न जोवामां आवे, वानभेदमात्र जोवामां आवे तो वानभेद छे; सोनानी शक्ति एवी पण छे; जो वानभेद न जोवामां आवे, केवळ सुवर्णमात्र जोवामां आवे, तो वानभेद जूठा छे; तेवी रीते जो शुद्ध जीववस्तुमात्र न जोवामां आवे, गुण-पर्यायमात्र के उत्पाद-व्यय-ध्रौव्यमात्र जोवामां आवे, तो गुण-पर्यायो छे, उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य छे; जीववस्तु आवी पण छे; जो गुण-