कहानजैनशास्त्रमाळा ]
पर्यायभेद के उत्पाद-व्यय-ध्रौव्यभेद न जोवामां आवे, वस्तुमात्र जोवामां आवे, तो समस्त भेद जूठा छे. आवो अनुभव सम्यक्त्व छे. वळी केवी छे आत्मज्योति? ‘‘उन्नीयमानं’’ चेतनालक्षणथी जणाय छे, तेथी अनुमानगोचर पण छे. हवे बीजो पक्ष — ‘‘उद्योतमानम्’’ प्रत्यक्ष ज्ञानगोचर छे. भावार्थ आम छे के भेदबुद्धि करतां जीववस्तु चेतनालक्षणथी जीवने जाणे छे, वस्तु विचारतां एटलो विकल्प पण जूठो छे, शुद्ध वस्तुमात्र छे. आवो अनुभव सम्यक्त्व छे. ८.
क्वचिदपि च न विद्मो याति निक्षेपचक्रम् ।
अनुभवमुपयाते भाति न द्वैतमेव ।।९।।
खंडान्वय सहित अर्थः — ‘‘अस्मिन् धाम्नि अनुभवमुपयाते द्वैतमेव न भाति’’ (अस्मिन्) आ – स्वयंसिद्ध (धाम्नि) चेतनात्मक जीववस्तुनो (अनुभवम्) प्रत्यक्षपणे आस्वाद (उपयाते) आवतां (द्वैतम् एव) सूक्ष्म-स्थूळ अन्तर्जल्प अने बहिर्जल्परूप बधा विकल्पो (न भाति) नथी शोभता. भावार्थ आम छे — अनुभव प्रत्यक्ष ज्ञान छे, प्रत्यक्ष ज्ञान छे एटले वेद्यवेदकभावपणे आस्वादरूप छे; ते अनुभव परसहायथी निरपेक्षपणे छे. आवो अनुभव जोके ज्ञानविशेष छे तोपण सम्यक्त्वनी साथे अविनाभूत छे, केम के ते सम्यग्द्रष्टिने होय छे, मिथ्याद्रष्टिने नथी होतो एवो निश्चय छे. आवो अनुभव थतां जीववस्तु पोताना शुद्ध स्वरूपने प्रत्यक्षपणे आस्वादे छे. तेथी जेटला काळ सुधी अनुभव छे तेटला काळ सुधी वचनव्यवहार सहज ज अटकी जाय छे, केम के वचनव्यवहार तो परोक्षपणे कथक छे. आ जीव तो प्रत्यक्षपणे अनुभवशील छे, तेथी (अनुभवकाळमां) वचन- व्यवहार पर्यंत कांई रह्युं नहि. केवी छे जीववस्तु? ‘‘सर्वंकषे’’ (सर्वं) बधा प्रकारना विकल्पोनी (कषे) क्षयकरणशील (क्षय करवाना स्वभाववाळी) छे. भावार्थ आम छे — जेम सूर्यप्रकाश अंधकारथी सहज ज भिन्न छे तेम अनुभव पण