Samaysar Kalash Tika-Gujarati (Devanagari transliteration). Shlok: 10.

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१२

समयसार-कलश
[ भगवानश्रीकुंदकुंद-

समस्त विकल्पोथी रहित ज छे. अहीं कोई प्रश्न करशे के अनुभव थतां कोई विकल्प रहे छे के जेमनुं नाम विकल्प छे ते बधाय मटे छे? उत्तर आम छे के बधाय विकल्पो मटे छे; ते ज कहे छे‘‘नयश्रीरपि न उदयति, प्रमाणमपि अस्तमेति, न विद्मः निक्षेपचक्रमपि क्वचित् याति, अपरम् किम् अभिदध्मः’’ जे अनुभव आवतां प्रमाण-नय-निक्षेप पण जूठां छे, त्यां रागादि विकल्पोनी शी कथा? भावार्थ आम छे के रागादि तो जूठा ज छे, जीवस्वरूपथी बाह्य छे. प्रमाण-नय-निक्षेपरूप बुद्धि द्वारा एक ज जीवद्रव्यना द्रव्य-गुण-पर्यायरूप अथवा उत्पाद-व्यय-ध्रौव्यरूप भेद करवामां आवे छे ते बधा जूठा छे; आ बधा जूठा थतां जे कंई वस्तुनो स्वाद छे ते अनुभव छे.

(प्रमाण) युगपद् अनेक धर्मग्राहक

ज्ञान; ते पण विकल्प छे. (नय) वस्तुना कोई एक गुणनुं ग्राहक ज्ञान; ते पण विकल्प छे. (निक्षेप) उपचारघटनारूप ज्ञान; ते पण विकल्प छे. भावार्थ आम छे के अनादि काळथी जीव अज्ञानी छे, जीवस्वरूपने नथी जाणतो. ते ज्यारे जीवसत्त्वनी प्रतीति आववी इच्छे त्यारे जेवी रीते प्रतीति आवे तेवी ज रीते वस्तुस्वरूप साधवामां आवे छे. ते साधना गुण-गुणीज्ञान द्वारा थाय छे, बीजो उपाय तो कोई नथी. तेथी वस्तुस्वरूपने गुण-गुणीभेदरूप विचारतां प्रमाण-नय- निक्षेपरूप विकल्पो ऊपजे छे. ते विकल्पो प्रथम अवस्थामां भला ज छे तोपण स्वरूपमात्र अनुभवतां जूठा छे. ९.

(उपजाति)
आत्मस्वभावं परभावभिन्न-
मापूर्णमाद्यन्तविमुक्तमेकम्
विलीनसंकल्पविकल्पजालं
प्रकाशयन् शुद्धनयोऽभ्युदेति
।।१०।।

खंडान्वय सहित अर्थः‘‘शुद्धनयः अभ्युदेति’’ (शुद्धनयः) निरुपाधि जीववस्तुस्वरूपनो उपदेश (अभ्युदेति) प्रगट थाय छे. शुं करतो थको प्रगट थाय छे? ‘‘एकम् प्रकाशयन्’’ (एकम्) शुद्धस्वरूप जीववस्तुने (प्रकाशयन्) निरूपतो थको. केवुं छे शुद्ध जीवस्वरूप? ‘‘आद्यन्तविमुक्तम्’’ (आद्यन्त) समस्त पाछला अने आगामी