Samaysar Kalash Tika-Gujarati (Devanagari transliteration). Shlok: 11.

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कहानजैनशास्त्रमाळा ]

जीव-अधिकार
१३

काळथी (विमुक्तम्) रहित छे. भावार्थ आम छे के शुद्ध जीववस्तुनो आदि पण नथी, अंत पण नथी. जे आवुं स्वरूप सूचवे तेनुं नाम शुद्धनय छे. वळी केवी छे जीववस्तु? ‘‘विलीनसंकल्पविकल्पजालं’’ (विलीन) विलय थई गया छे (संकल्प) रागादि परिणाम अने (विकल्प) अनेक नयविकल्परूप ज्ञानना पर्याय जेने एवी छे. भावार्थ आम छे के समस्त संकल्प-विकल्पथी रहित वस्तुस्वरूपनो अनुभव सम्यक्त्व छे. वळी केवी छे शुद्ध जीववस्तु? ‘‘परभावभिन्नम्’’ रागादि भावोथी भिन्न छे. वळी केवी छे? ‘‘आपूर्णम्’’ पोताना गुणोथी परिपूर्ण छे. वळी केवी छे? ‘‘आत्मस्वभावं’’ आत्मानो निज भाव छे. १०.

(मालिनी)
न हि विदधति बद्धस्पृष्टभावादयोऽमी
स्फु टमुपरि तरन्तोऽप्येत्य यत्र प्रतिष्ठाम्
अनुभवतु तमेव द्योतमानं समन्तात्
जगदपगतमोहीभूय सम्यक्स्वभावम्
।।११।।

खंडान्वय सहित अर्थः‘‘जगत् तमेव स्वभावम् सम्यक् अनुभवतु’’ (जगत्) सर्व जीवराशि (तम् एव) निश्चयथी पूर्वोक्त (स्वभावम्) शुद्ध जीववस्तुने (सम्यक्) जेवी छे तेवी (अनुभवतु) प्रत्यक्षपणे स्वसंवेदनरूप आस्वादो. केवो थईने आस्वादो? ‘‘अपगतमोहीभूय’’ (अपगत) टळी गई छे (मोहीभूय) शरीरादि परद्रव्य साथे एकत्वबुद्धि जेनी एवो थईने. भावार्थ आम छे के संसारी जीवने संसारमां वसतां अनंत काळ गयो. शरीरादि परद्रव्य-स्वभाव हतो, परंतु आ जीव पोतानो ज जाणीने प्रवर्त्यो; तो ज्यारे आ विपरीत बुद्धि छूटे त्यारे ज आ जीव शुद्धस्वरूप अनुभववाने योग्य थाय छे. केवुं छे शुद्धस्वरूप?

‘समन्तात् द्योतमानं’’

(समन्तात्) सर्व प्रकारे (द्योतमानं) प्रकाशमान छे. भावार्थ आम छे के अनुभवगोचर थतां कांई भ्रांति रहेती नथी. अहीं कोई प्रश्न करे छे के जीव तो शुद्धस्वरूप कह्यो अने ते एवो ज छे, परंतु रागद्वेषमोहरूप परिणामोने अथवा सुखदुःखादिरूप परिणामोने कोण करे छे?कोण भोगवे छे? उत्तर आम छे के आ परिणामोने करे तो जीव करे छे अने जीव भोगवे छे, परंतु आ परिणति