Samaysar Kalash Tika-Gujarati (Devanagari transliteration). Shlok: 27.

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२८

समयसार-कलश
[ भगवानश्रीकुंदकुंद-

निश्चळ छे. वळी केवुं छे? ‘‘परं’’ उत्कृष्ट छे. भावार्थ आम छे के जेवी रीते वायु रहित समुद्र निश्चळ होय छे तेवी ज रीते तीर्थंकरनुं शरीर निश्चळ छे. आ रीते शरीरनी स्तुति करतां आत्मानी स्तुति नथी थती, कारण के शरीरना गुण आत्मामां नथी. आत्मानो ज्ञानगुण छे; ज्ञानगुणनी स्तुति करतां आत्मानी स्तुति थाय छे. २६.

(शार्दूलविक्रीडित)
एकत्वं व्यवहारतो न तु पुनः कायात्मनोर्निश्चयात्
नुः स्तोत्रं व्यवहारतोऽस्ति वपुषः स्तुत्या न तत्तत्त्वतः
स्तोत्रं निश्चयतश्चितो भवति चित्स्तुत्यैव सैवं भवेत्
नातस्तीर्थकरस्तवोत्तरबलादेकत्वमात्माङ्गयोः
।।२७।।

खंडान्वय सहित अर्थः‘‘अतः तीर्थकरस्तवोत्तरबलात् आत्माङ्गयोः एकत्वं न भवेत्’’ (अतः) आ कारणथी, (तीर्थकरस्तव) ‘परमेश्वरना शरीरनी स्तुति करतां आत्मानी स्तुति थाय छे’ एम जे मिथ्यामती जीव कहे छे तेना प्रति (उत्तरबलात्) ‘शरीरनी स्तुति करतां आत्मानी स्तुति थती नथी, आत्माना ज्ञानगुणनी स्तुति करतां आत्मानी स्तुति थाय छे,’ आवा उत्तरना बळथी अर्थात् ते उत्तर द्वारा संदेह नष्ट थई जवाथी,

(आत्म) चेतनवस्तुने अने (अङ्गयोः) समस्त कर्मनी उपाधिने

(एकत्वं) एकद्रव्यपणुं (न भवेत्) थतुं नथी. आत्मानी स्तुति जे रीते थाय छे ते कहे छे‘‘सा एवं’’ (सा) ते जीवस्तुति (एवं) जेवी रीते मिथ्याद्रष्टि कहेतो हतो तेवी रीते नथी, किन्तु जे रीते हवे कहे छे ते रीते ज छे‘‘कायात्मनोः व्यवहारतः एकत्वं, तु पुनः न निश्चयात्’’ (कायात्मनोः) शरीरादि अने चेतनद्रव्य ए बंनेने (व्यवहारतः) कथनमात्रथी (एकत्वं) एकपणुं छे. भावार्थ आम छे के जेवी रीते सोनुं अने रूपुं ए बंनेने ओगाळीने एक सोगठी बनाववामां आवे छे, त्यां ते सघळुं कहेवामां तो सुवर्ण ज कहेवाय छे, तेवी रीते जीव अने कर्म अनादिथी एकक्षेत्रसंबंधरूप मळेलां चाल्यां आवे छे तेथी ते सघळुं कथनमां तो जीव ज कहेवाय छे.

(तु पुनः) बीजा पक्षे (न) जीव-कर्मने एकपणुं नथी. ते कया पक्षे?