कहानजैनशास्त्रमाळा ]
खंडान्वय सहित अर्थः — ‘‘इदं नगरम् परिखावलयेन पातालम् पिबति इव’’ (इदं) प्रत्यक्ष (नगरम्) नगर अर्थात् राजग्राम (परिखावलयेन) खाई वडे घेरायेलुं होवाथी (पातालम्) अधोलोकने, (पिबति इव) खाई एटली ऊंडी छे जेथी एम लागे छे के, पी रह्युं छे. केवुं छे नगर? ‘‘प्राकारकवलिताम्बरम्’’ (प्राकार) कोट वडे (कवलित) गळी गयुं छे (अम्बरम्) आकाशने जे, एवुं नगर छे. भावार्थ आम छे के कोट घणो ज ऊंचो छे. वळी केवुं छे नगर? ‘‘उपवनराजीनिगीर्णभूमितलम्’’ (उपवनराजी) नगरनी समीप चारे तरफ फेलायेला बागोथी (निगीर्ण) रुंधायेली छे (भूमितलम्) समस्त भूमि जेनी, एवुं ते नगर छे. भावार्थ आम छे के नगरनी बहार घणा बाग छे. आवी नगरनी स्तुति करतां राजानी स्तुति थती नथी. अहीं खाई-कोट-बागनुं वर्णन कर्युं ते तो राजाना गुणो नथी; राजाना गुणो छे दान, पौरुष (शूरवीरता) अने जाणपणुं; तेमनी स्तुति करतां राजानी स्तुति थाय छे. २५.
खंडान्वय सहित अर्थः — ‘‘जिनेन्द्ररूपं जयति’’ (जिनेन्द्ररूपं) जिनेन्द्ररूप अर्थात् तीर्थंकरना शरीरनी शोभा (जयति) जयवंत हो. केवुं छे जिनेन्द्ररूप? ‘‘नित्यं’’ आयुपर्यन्त एकरूप छे. वळी केवुं छे? ‘‘अविकारसुस्थितसर्वाङ्गम्’’ (अविकार) जेमां बाळपणुं, तरुणपणुं अने वृद्धपणुं नहीं होवाथी (सुस्थित) समाधानरूप (सारी रीते गोठवायेला) छे (सर्वाङ्गम्) सर्व प्रदेश जेना एवुं छे. वळी केवुं छे जिनेन्द्रनुं रूप? ‘‘अपूर्वसहजलावण्यम्’’ (अपूर्व) आश्चर्यकारी छे तथा (सहज) विना यत्ने शरीर साथे मळेला छे (लावण्यम्) शरीरना गुणो जेने एवुं छे. वळी केवुं छे? ‘‘समुद्रम् इव अक्षोभम्’’ (समुद्रम् इव) समुद्रनी माफक (अक्षोभम्)