Samaysar Kalash Tika-Gujarati (Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


Page 26 of 269
PDF/HTML Page 48 of 291

 

२६

समयसार-कलश
[ भगवानश्रीकुंदकुंद-

ज मोटप कही छे. वळी केवा छे तीर्थंकरो? ‘‘ये रूपेण जनमनो मुष्णन्ति’’ (ये) तीर्थंकरो (रूपेण) शरीरनी शोभाथी (जन) जेटलां देव-मनुष्य-तिर्यंचए बधांनां (मनः) अंतरंगने (मुष्णन्ति) चोरी ले छे. भावार्थ आम छे के जीवो तीर्थंकरना शरीरनी शोभा देखीने जेवुं सुख माने छे तेवुं सुख त्रैलोक्यमां अन्य वस्तुने देखीने नथी मानता; एवा ते तीर्थंकरो छे. अहीं पण शरीरनी मोटप करी छे. वळी केवा छे तीर्थंकरो? ‘‘ये दिव्येन ध्वनिना श्रवणयोः साक्षात् सुखं अमृतं क्षरन्तः’’ (ये) तीर्थंकरदेवो (दिव्येन) समस्त त्रैलोक्यमां उत्कृष्ट एवी (ध्वनिना) निरक्षरी वाणी वडे (श्रवणयोः) सर्व जीवोनी कर्णेन्द्रियोमां (साक्षात्) तत्काळ (सुखं अमृतं) सुखमय शान्तरसने (क्षरन्तः) वरसावे छे. भावार्थ आम छे के तीर्थंकरनी वाणी सांभळतां सर्व जीवोने वाणी रुचे छे, जीवो बहु सुखी थाय छे; तीर्थंकरो एवा छे. अहीं पण शरीरनी मोटप छे. वळी केवा छे तीर्थंकरो? ‘‘अष्टसहस्रलक्षणधराः’’ (अष्टसहस्र) आठ अधिक एक हजार (लक्षणधराः) शरीरनां चिह्नो सहज ज धारण करे छे; एवा तीर्थंकरो छे. भावार्थ आम छे के तीर्थंकरना शरीरमां शंख, चक्र, गदा, पद्म, कमळ, मगर, मच्छ, ध्वजा इत्यादिरूप आकृतिवाळी रेखाओ होय छे, जे समस्त गणतां एक हजार ने आठ थाय छे. अहीं पण शरीरनी मोटप छे. वळी केवा छे तीर्थंकरो?

‘‘सूरयः’’ मोक्षमार्गना उपदेष्टा छे. अहीं पण शरीरनी मोटप छे.

आथी जीव-शरीर एक ज छे एवी मारी प्रतीति छे, एवुं कोई मिथ्यामतवादी माने छे. तेनो उत्तर आम प्रमाणे आगळ कहेशेः ग्रंथकर्ता कहे छे के वचनव्यवहारमात्रथी जीव-शरीरनुं एकपणुं कहेवाय छे. आथी एम कह्युं छे के जे शरीरनुं स्तोत्र छे ते तो व्यवहारमात्रथी जीवनुं स्तोत्र छे. द्रव्यद्रष्टिथी जोतां जीव- शरीर भिन्न भिन्न छे. तेथी जेवुं स्तोत्र कह्युं छे ते निज नामथी जूठुं छे (अर्थात् तेनुं नाम स्तोत्र घटित थतुं नथी), केम के शरीरना गुण कहेतां जीवनी स्तुति थती नथी, जीवना ज्ञानगुणनी स्तुति करतां (जीवनी) स्तुति थाय छे. कोई प्रश्न करे छे के जेवी रीते नगरनो स्वामी राजा छे तेथी नगरनी स्तुति करतां राजानी स्तुति थाय छे, तेवी ज रीते शरीरनो स्वामी जीव छे तेथी शरीरनी स्तुति करतां जीवनी स्तुति थाय छे. उत्तर आम छे के ए रीते स्तुति थती नथी; राजाना निज गुणनी स्तुति करतां राजानी स्तुति थाय छे, तेवी ज रीते जीवना निज चैतन्यगुणनी स्तुति करतां जीवनी स्तुति थाय छे. ते ज कहे छे. २४.