Samaysar Kalash Tika-Gujarati (Devanagari transliteration).

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समयसार-कलश
[ भगवानश्रीकुंदकुंद-

त्रण लोकने कोना वडे जाणे छे? ‘‘प्रसभविकसद्व्यक्तचिन्मात्रशक्त्या’’ (प्रसभ) बलात्कारथी (विकसत्) प्रकाशमान छे (व्यक्त) प्रगटपणे एवो छे जे (चिन्मात्रशक्त्या) ज्ञानगुणस्वभाव तेना वडे जाण्या छे त्रण लोक जेणे एवी छे. वळी शुं करीने? ‘‘इत्थं ज्ञानक्रकचकलनात् पाटनं नाटयित्वा’’ (इत्थं) पूर्वोक्त विधिथी (ज्ञान) भेद- बुद्धिरूपी (क्रकच) करवतना (कलनात्) वारंवार अभ्यासथी (पाटनं) जीव-अजीवनी भिन्नरूप बे फाड (विभाग) (नाटयित्वा) करीने. कोई प्रश्न करे छे के जीव-अजीवनी बे फाड तो ज्ञानरूपी करवत वडे करी, ते पहेलां तेओ केवा रूपे हतां? उत्तर ‘‘यावत् जीवाजीवौ स्फु टविघटनं न एव प्रयातः’’ (यावत्) अनंत काळथी मांडीने (जीवाजीवौ) जीव अने कर्मनो एकपिंडरूप पर्याय (स्फु टविघटनं) प्रगटपणे भिन्नभिन्न (न एव प्रयातः) थयो नहोतो. भावार्थ आम छे के जेवी रीते सुवर्ण अने पाषाण मळेलां चाल्यां आवे छे, अने भिन्नभिन्नरूप छे तोपण अग्निना संयोग विना प्रगटपणे भिन्न थतां नथी, अग्निनो संयोग ज्यारे पामे त्यारे ज तत्काळ भिन्नभिन्न थाय छे; तेवी रीते जीव अने कर्मनो संयोग अनादिथी चाल्यो आवे छे, अने जीव-कर्म भिन्नभिन्न छे तोपण शुद्धस्वरूप-अनुभव विना प्रगटपणे भिन्नभिन्न थतां नथी; जे काळे शुद्धस्वरूप-अनुभव थाय छे ते काळे भिन्नभिन्न थाय छे. १३४५.