कहानजैनशास्त्रमाळा ]
आगमन (वा कथं भवति) ते पण केम थई शके? २-४७.
स्वं विज्ञानघनस्वभावमभयादास्तिघ्नुवानः परम् ।
ज्ञानीभूत इतश्चकास्ति जगतः साक्षी पुराणः पुमान् ।।३-४८।।
खंडान्वय सहित अर्थः — ‘‘पुमान् स्वयं ज्ञानीभूतः इतः जगतः साक्षी चकास्ति’’ (पुमान्) जीवद्रव्य (स्वयं ज्ञानीभूतः) पोतानी मेळे पोताना शुद्ध स्वरूपना अनुभवनमां समर्थ थयुं थकुं, (इतः) अहींथी शरू करीने, (जगतः साक्षी) सकळ द्रव्यस्वरूपनुं जाणनशील थईने (चकास्ति) शोभे छे. भावार्थ आम छे के ज्यारे जीवने शुद्ध स्वरूपनो अनुभव थाय छे त्यारे सकळ परद्रव्यरूप द्रव्यकर्म-भावकर्म- नोकर्म विषे उदासीनपणुं थाय छे. केवुं छे जीवद्रव्य? ‘‘पुराणः’’ द्रव्यनी अपेक्षाए अनादिनिधन छे. वळी केवुं छे? ‘‘क्लेशात् निवृत्तः’’ (क्लेशात्) क्लेशथी अर्थात् दुःखथी (निवृत्तः) रहित छे. केवो छे क्लेश? ‘‘अज्ञानोत्थितकर्तृकर्मकलनात्’’ (अज्ञान) जीव-कर्मना एकसंस्काररूप जूठा अनुभवथी (उत्थित) नीपजी छे (कर्तृकर्मकलनात्) ‘जीव कर्ता अने जीवनुं कृत्य ज्ञानावरणादि द्रव्यपिंड’ एवी विपरीत प्रतीति जेने, एवो छे. वळी केवी छे जीववस्तु? ‘‘इति एवं सम्प्रति परद्रव्यात् परां निवृत्तिं विरचय्य स्वं आस्तिघ्नुवानः’’ (इति) आटला (एवं) पूर्वोक्त प्रकारे (सम्प्रति) विद्यमान (परद्रव्यात्) परवस्तु जे द्रव्यकर्म-भावकर्म-नोकर्म तेनाथी (निवृत्तिं) सर्वथा त्यागबुद्धि (परां) मूळथी (विरचय्य) करीने (स्वं) ‘स्व’ने अर्थात् शुद्ध चिद्रूपने (आस्तिघ्नुवानः) आस्वादती थकी. केवो छे ‘स्व’? ‘‘विज्ञानघनस्वभावम्’’ (विज्ञानघन) शुद्ध ज्ञाननो समूह छे (स्वभावम्) सर्वस्व जेनुं एवो छे. वळी केवो छे ‘स्व’? ‘‘परम्’’ सदा शुद्धस्वरूप छे. ‘‘अभयात्’’ (जीववस्तु शुद्ध चिद्रूपने) सात भयथी रहितपणे आस्वादे छे. ३ – ४८.