Samaysar Kalash Tika-Gujarati (Devanagari transliteration). Shlok: 49.

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समयसार-कलश
[ भगवानश्रीकुंदकुंद-
(शार्दूलविक्रीडित)
व्याप्यव्यापकता तदात्मनि भवेन्नैवातदात्मन्यपि
व्याप्यव्यापकभावसम्भवमृते का कर्तृकर्मस्थितिः
इत्युद्दामविवेकघस्मरमहोभारेण भिन्दँस्तमो
ज्ञानीभूय तदा स एष लसितः कर्तृत्वशून्यः पुमान्
।।४-४९।।

खंडान्वय सहित अर्थः‘‘तदा स एष पुमान् कर्तृत्वशून्यः लसितः’’ (तदा) ते काळे (स एष पुमान्) जे जीव अनादि काळथी मिथ्यात्वरूप परिणम्यो हतो ते ज जीव (कर्तृत्वशून्यः लसितः) कर्म करवाथी रहित थयो. केवो छे जीव? ‘‘ज्ञानीभूय तमः भिन्दन्’’ (ज्ञानीभूय) अनादिथी मिथ्यात्वरूप परिणमतां जीव-कर्मना एकपर्यायस्वरूप परिणमतो हतो ते छूट्युं, शुद्धचेतन-अनुभव थयो, एम थतां (तमः) मिथ्यात्वरूप अंधकार (भिन्दन्) छेदतो थको. कोना वडे मिथ्यात्व-अंधकार छूट्यो? ‘‘इति उद्दामविवेकघस्मरमहोभारेण’’ (इति) जे कह्यो छे, (उद्दाम) बळवान छे एवा (विवेक) भेदज्ञानरूपी (घस्मरमहःभारेण) सूर्यना तेजना समूह वडे. हवे जे विचारतां भेदज्ञान थाय छे ते ज कहे छे‘‘व्याप्यव्यापकता तदात्मनि भवेत्’’ (व्याप्य) समस्त गुणरूप अने पर्यायरूप भेद-विकल्पो तथा (व्यापकता) एक द्रव्यरूप वस्तु (तदात्मनि) एक सत्त्वरूप वस्तुमां (भवेत्) होय छे. भावार्थ आम छे के जेम सुवर्ण पीळुं, भारे, चीकणुं एम कहेवा माटे छे, परंतु एक सत्त्व छे तेम जीवद्रव्य ज्ञाता, द्रष्टा एम कहेवा माटे छे, परंतु एक सत्त्व छे. ए प्रमाणे एक सत्त्वमां व्याप्य-व्यापकता होय छे अर्थात् भेदबुद्धि करवामां आवे तो व्याप्य- व्यापकता होय छे. विवरणःव्यापक अर्थात् द्रव्य-परिणामी पोताना परिणामनो कर्ता होय छे; व्याप्य अर्थात् ते परिणाम द्रव्ये कर्या. जेमां (एक सत्त्वमां) आवो भेद करवामां आवे तो थाय छे, न करवामां आवे तो नथी थतो. ‘‘अतदात्मनि अपि न एव’’ (अतदात्मनि) जीवसत्त्वथी पुद्गलद्रव्यनुं सत्त्व भिन्न छे, (अपि) निश्चयथी (न एव) व्याप्य-व्यापकता नथी. भावार्थ आम छे के जेम उपचारमात्रथी द्रव्य पोताना परिणामनो कर्ता छे, ते ज परिणाम द्रव्यथी करायेलो छे तेम अन्य