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समयसार-कलश
[ भगवानश्रीकुंदकुंद-
पक्षपात छे. जे तत्त्ववेदी पक्षपातरहित छे तेने निरन्तर चित्स्वरूप जीव चित्स्वरूप ज छे (अर्थात् तेने चित्स्वरूप जीव जेवो छे तेवो निरन्तर अनुभवाय छे). २६ – ७१.
(उपजाति)
एकस्य रक्तो न तथा परस्य
चिति द्वयोर्द्वाविति पक्षपातौ ।
चिति द्वयोर्द्वाविति पक्षपातौ ।
यस्तत्त्ववेदी च्युतपक्षपात-
स्तस्यास्ति नित्यं खलु चिच्चिदेव ।।२७-७२।।
स्तस्यास्ति नित्यं खलु चिच्चिदेव ।।२७-७२।।
अर्थः – जीव रागी छे एवो एक नयनो पक्ष छे अने जीव रागी नथी एवो बीजा नयनो पक्ष छे; आम चित्स्वरूप जीव विषे बे नयोना बे पक्षपात छे. जे तत्त्ववेदी पक्षपातरहित छे तेने निरन्तर चित्स्वरूप जीव चित्स्वरूप ज छे. २७ – ७२.
(उपजाति)
एकस्य दुष्टो न तथा परस्य
चिति द्वयोर्द्वाविति पक्षपातौ ।
चिति द्वयोर्द्वाविति पक्षपातौ ।
यस्तत्त्ववेदी च्युतपक्षपात-
स्तस्यास्ति नित्यं खलु चिच्चिदेव ।।२८-७३।।
स्तस्यास्ति नित्यं खलु चिच्चिदेव ।।२८-७३।।
अर्थः – जीव द्वेषी छे एवो एक नयनो पक्ष छे अने जीव द्वेषी नथी एवो बीजा नयनो पक्ष छे; आम चित्स्वरूप जीव विषे बे नयोना बे पक्षपात छे. जे तत्त्ववेदी पक्षपातरहित छे तेने निरन्तर चित्स्वरूप जीव चित्स्वरूप ज छे. २८ – ७३.
(उपजाति)
एकस्य कर्ता न तथा परस्य
चिति द्वयोर्द्वाविति पक्षपातौ ।
चिति द्वयोर्द्वाविति पक्षपातौ ।
यस्तत्त्ववेदी च्युतपक्षपात-
स्तस्यास्ति नित्यं खलु चिच्चिदेव ।।२९-७४।।
स्तस्यास्ति नित्यं खलु चिच्चिदेव ।।२९-७४।।