कहानजैनशास्त्रमाळा ]
चैतन्यमात्र वस्तुमां (द्वयोः) द्रव्यार्थिक-पर्यायार्थिक — बे नयोना (इति) आम (द्वौ पक्षपातौ) बंने पक्षपात छे. ‘‘एकस्य बद्धः तथा अपरस्य न’’ (एकस्य) अशुद्ध पर्यायमात्रग्राहक ज्ञाननो पक्ष करतां (बद्धः) जीवद्रव्य बंधायुं छे; [भावार्थ आम छे के – जीवद्रव्य अनादिथी कर्मसंयोग साथे एकपर्यायरूप चाल्युं आव्युं छे, विभावरूप परिणम्युं छे – एम एक बंधपर्यायने अंगीकार करीए, द्रव्यस्वरूपनो पक्ष न करीए, तो जीव बंधायो छे; एक पक्ष आ रीते छे;] (तथा) बीजो पक्ष — (अपरस्य) द्रव्यार्थिकनयनो पक्ष करतां (न) बंधायो नथी. भावार्थ आम छे के — जीवद्रव्य अनादिनिधन चेतनालक्षण छे, आम द्रव्यमात्रनो पक्ष करतां जीवद्रव्य बंधायुं तो नथी, सदा पोताना स्वरूपे छे; केम के कोई पण द्रव्य कोई अन्य द्रव्य-गुण- पर्यायरूपे परिणमतुं नथी, बधांय द्रव्यो पोताना स्वरूपे परिणमे छे. ‘‘यः तत्त्ववेदी’’ जे कोई शुद्ध चेतनामात्र जीवना स्वरूपनो अनुभवनशील छे जीव, ‘‘च्युतपक्षपातः’’ ते जीव पक्षपातथी रहित छे. भावार्थ आम छे के – एक वस्तुनी अनेकरूप कल्पना करवामां आवे छे तेनुं नाम पक्षपात कहेवाय छे, तेथी वस्तुमात्रनो स्वाद आवतां कल्पनाबुद्धि सहज ज मटे छे. ‘‘तस्य चित् चित् एव अस्ति’’ (तस्य) शुद्ध स्वरूपने अनुभवे छे तेने ‘(चित्) चैतन्यवस्तु (चित् एव अस्ति) चेतनामात्र वस्तु छे’ एवो प्रत्यक्षपणे स्वाद आवे छे. २५ – ७०*
चिति द्वयोर्द्वाविति पक्षपातौ ।
स्तस्यास्ति नित्यं खलु चिच्चिदेव ।।२६-७१।।
अर्थः — जीव मूढ (मोही) छे एवो एक नयनो पक्ष छे अने जीव मूढ (मोही) नथी एवो बीजा नयनो पक्ष छे; आम चित्स्वरूप जीव विषे बे नयोना बे
* अहींथी हवे पछीना २६ थी ४४ सुधीना श्लोको २५ मा श्लोकनी साथे मळता छे, तेथी पं. श्री राजमल्लजीए ते श्लोकोनो ‘‘खंडान्वय सहित अर्थ’’ कर्यो नथी. मूळ श्लोको, तेमनो अर्थ तथा भावार्थ गुजराती समयसारमांथी अहीं आपवामां आव्या छे.