Sattasvarup-Gujarati (Devanagari transliteration).

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सर्वज्ञ सत्तास्वरूप ][ १०१
किंजिज्ज्ञस्यापि तद्वन्मे तेनैवेति विनिश्चयः
इत्युक्तमशेषज्ञसाधनोपायसंभवात् ।।२७।।
यथाहमनुमानादेः सर्वज्ञं वेह्नि तत्त्वतः
तथान्येपि नराः संतस्तद्बोद्धारो निरंकुशाः ।।२८।।
(प्र. अ. पानुं १४)
इत्यादि बधी जिनमतनी निर्बलता दर्शावी पण ए
अवस्था तो जैनाभासी छे के जेने मतनुं, आम्नायनुं,
वस्तुओना स्वरूपनुं वा स्व
परना कल्याणनुं ज्ञान तो न थयुं
होय अने (मात्र) कुळादिक, वा पंचायतआदिना आश्रयथी
पूजा
तप, त्यागादिरूप प्रवर्ते छे, तथा जैनी कहेवरावे छे तेमने
ज छे. कारण केविशेष ज्ञान न होय तोपण जे मोक्षमार्गनी
प्रयोजनभूत रकम छे तेनुं ज्ञान तो निर्णयरूपहेतुपूर्वक होवुं
जोईए. जे साचो जैनी हशे ते तो प्रयोजनभूत रकममां अन्य
द्वारा बाधा सर्वथा आववा देशे नहि तथा बाधा जोईने पोताने
तलाकपणुं (‘एम नहि’ एवो नकार, अरुचि) न आवे अने
जो पोते सर्वनुं मन रंजायमान करवा अर्थे (मात्र) मंदकषायी
शीतल बनीने ज रहे अने वार्तालाप करीने तेनी बाधानुं खंडन
न करे तो ते जैनाभासी मिथ्याद्रष्टि ज छे. कारण के जे जैन
होय ते पोताना कानोथी जिनमतनी बाधानां वचन केवी रीते
अर्थ :जेम हुं अनुमानादिथी सर्वज्ञने वास्तविक रीते जाणुं
छुं, तेम अन्य मनुष्यो पण सर्वज्ञने जाणनारा होय तेमां कोई
बाधा नथी.