Sattasvarup-Gujarati (Devanagari transliteration).

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१०० ]
[ सर्वज्ञ सत्तास्वरूप
सद्भाव भासवानी परीक्षा करवी छे तो तमे तेने पूछो, अने
पछी तेने स्वार्थानुमान द्वारा सर्वज्ञनी सत्ता सिद्ध थई हशे तो
ते तमने परार्थानुमान द्वारा सर्वज्ञनी सत्ता सिद्ध करावी देशे.
जो तमे तेनाथी चतुर थई निर्णय करवाना अर्थी बनी पूछशो,
अने तेनाथी हेतुना आश्रये साची सिद्धि न करावी शकाई तो
ते नियमथी स्याद्वादी छे ज नहि. जेम बीजा लौकिक अज्ञानी
जीवो छे, तेवो एने पण जाणवो. कारण के
जेम लौकिकजीव
विषयकषायादिकनां कार्योमां पर्यायबुद्धिरूप छेतेमां मग्न थई
विचक्षण बनी रह्या छे तेम ए जूठा स्याद्वादी कहेवाई
बुद्धिरूप जे पूजा, दान, तप अने त्यागादिकमां मग्न थई
धर्मात्मा बनी रह्या छे. माटे तमे आ नियमथी जाणो के
जेने
सर्वज्ञनी सत्तानो निश्चय थयो हशे ते ज स्याद्वादी छे, एटला
माटे नरत्व, कायमानपणुं आदि हेतु आपी स्याद्वादीने
सर्वज्ञनी सत्तानो सद्भाव भासवानो निषेध छे ते असंभवरूप
छे. श्री श्लोकवार्तिकजीमां पण कह्युं छे के
आसन् संति भविष्यंति बोद्धारो विश्वदृश्वनः
मदन्येपीति निर्णीतिर्यथा सर्वज्ञवादिनः ।।२६।।
अर्थ :जेम पोते अल्पज्ञ होवा छतां सर्वज्ञवादीने निर्णय छे
के ‘मारा सिवाय बीजा पण सर्वज्ञना जाणनारा भूतकाळमां
थया छे, वर्तमान काळे छे अने भविष्य काळे थशे’, तेम मने
पण ए ज रीते ‘सर्वज्ञ नथी’ एवो त्रैकालिक निर्णय होई शके
छे
आम (तारुं) कहेवुं अयुक्त छे, कारण के सर्वज्ञने सिद्ध
करनारां प्रमाणो मोजूद छे.