पछी तेने स्वार्थानुमान द्वारा सर्वज्ञनी सत्ता सिद्ध थई हशे तो
ते तमने परार्थानुमान द्वारा सर्वज्ञनी सत्ता सिद्ध करावी देशे.
जो तमे तेनाथी चतुर थई निर्णय करवाना अर्थी बनी पूछशो,
अने तेनाथी हेतुना आश्रये साची सिद्धि न करावी शकाई तो
ते नियमथी स्याद्वादी छे ज नहि. जेम बीजा लौकिक अज्ञानी
जीवो छे, तेवो एने पण जाणवो. कारण के
बुद्धिरूप जे पूजा, दान, तप अने त्यागादिकमां मग्न थई
धर्मात्मा बनी रह्या छे. माटे तमे आ नियमथी जाणो के
माटे नरत्व, कायमानपणुं आदि हेतु आपी स्याद्वादीने
सर्वज्ञनी सत्तानो सद्भाव भासवानो निषेध छे ते असंभवरूप
छे. श्री श्लोकवार्तिकजीमां पण कह्युं छे के
थया छे, वर्तमान काळे छे अने भविष्य काळे थशे’, तेम मने
पण ए ज रीते ‘सर्वज्ञ नथी’ एवो त्रैकालिक निर्णय होई शके
छे