शुं छे?’’
अमे जूठो करी ज दीधो छे. तथा सर्वज्ञनो सद्भाव सिद्ध
थवानो उपाय तमारे करवो छे तो स्याद्वादना कह्या प्रमाणे
अमे अनुमान सिद्ध करी चित्त लगाव्युं छे तेम तमे पण चित्त
लगावो तो सर्वज्ञनी सत्ता अवश्य भासशे ज. वळी तमे आ
हेतु आप्यो के
स्याद्वादमां शुं विशेषता छे?’’ आ हेतु तमे असत्य आप्यो
छे, कारण के जगतमां मनुष्यशरीरवान तो बधा एक ज
जातिना छे. परंतु तेमां आटली विशेषता तो आजे पण प्रत्यक्ष
जोईए छीए के
शराफीनुं ज्ञान छे, कोईने बजाजीनुं (गावा
नथी, कोई दुष्टबुद्धिवान छे, कोईने धर्मबुद्धि छे तथा कोईने
पापबुद्धि छे; ए ज प्रमाणे तमने सर्वज्ञनो सद्भाव न भास्यो
अने स्याद्वादीने भास्यो तो एमां विरोध क्यां आव्यो?