Sattasvarup-Gujarati (Devanagari transliteration).

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९८ ]
[ सर्वज्ञ सत्तास्वरूप
परीक्षावाळाने केवी रीते स्तवन करवा योग्य छे? माटे तमे सर्व
कार्योनी पहेलां पोताना ज्ञानमां सर्वज्ञनी सत्ता सिद्ध करो ए
ज सर्व धर्मनुं मूळ छे, तथा ए ज जिनमतनी आम्नाय छे.
अहीं कोई प्रश्न करे के
‘धर्म, अधर्मना उपाय सहित
हेयोपादेयतत्त्व ए ज कोईने प्रत्यक्ष छे, ए प्रमाणे तो कहेवुं
पण सकल पदार्थ प्रत्यक्ष छे, एम न कहेवुं.’
तेने उत्तर आपीए छीए केतमे प्रश्न कर्यो पण ए
प्रमाणे नथी. कारण केसकल पदार्थ प्रत्यक्ष छे एम न होय
तो धर्म, अधर्म, हेय, उपादेय तत्त्वनुं पण प्रत्यक्षपणुं न बने.
वळी जो उपचारथी सकलपदार्थ प्रत्यक्ष कहेशो तो तमे (मात्र)
महिमा अर्थे आ वात कही पण तेमां ए गुण तो साचो न
आव्यो, त्यारे जूठमतवाळाओना जेवुं कहेवुं थयुं. कारण के
नियम छे के जेने सकल पदार्थ साचा प्रत्यक्षरूप न थया तेने
कोई वस्तुनी प्रमाणता नथी.
वळी ते कहे छे के ‘‘जेम सर्वज्ञवादी कहे के ‘मने
किंचित्ज्ञानीने सर्वज्ञनुं श्रद्धान अनुमान वडे जेम भास्युं छे ते
ज प्रमाणे सर्वज्ञने जाणनार पहेला थया छे, आजे छे तथा
भविष्यमां थशे’ तेम आवुं कहेनार ए सर्वज्ञवादीने अमे एम
कहीशुं के
मने किंचित्ज्ञानीने जेम सर्वज्ञनो सद्भाव न भास्यो
ते ज प्रमाणे पूर्वमां पण सर्वज्ञनी सत्तानो सद्भाव कोईने
भास्यो नथी, वर्तमानमां कोईने भासतो नथी तथा भविष्यमां
१. असर्वज्ञवादी.