देवादिकने) न पण माने, मात्र तेनो ज (पोते मानेला
जिनदेवादिकनो ज) सेवक बनी रह्यो छे तेने तो नियमथी
पोताना आत्मकल्याणरूप कार्यनी सिद्धि थती नथी, तेथी ते
अज्ञानी मिथ्याद्रष्टि ज छे. कारण के
तो केवी रीते थशे?
ज जाय छे! तेनो उत्तर
तो देवनां दर्शनथी आत्मदर्शनरूप फळ थवुं कह्युं छे ते तो
नियमथी सर्वज्ञनी सत्ता जाणवाथी ज थशे, अन्य प्रकारथी नहि
थाय, ए ज श्री प्रवचनसारमां कह्युं छे. वळी तमे लौकिक
कार्योमां तो एवा चतुर छो के वस्तुनां सत्ता आदि निश्चय कर्या
विना सर्वथा प्रवर्तता नथी; अने अहीं तमे सत्तानिश्चय पण
न करतां घेला (पागल) अनध्यवसायी थई प्रवर्तो छो ए मोटुं
आश्चर्य छे, माटे श्लोकवार्तिकमां (पानुं ९) कह्युं छे के