Sattasvarup-Gujarati (Devanagari transliteration).

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सर्वज्ञ सत्तास्वरूप ][ ९७
पण जे सत्तानो निश्चय तो करतो नथी अने कुलपद्धतिथी,
पंचायतना आश्रयथी वा मिथ्याधर्मबुद्धिथी दर्शनपूजनादिरूप
प्रवर्ते छे वा मतपक्षना हठग्राहीपणाथी बीजाओने (अन्य
देवादिकने) न पण माने, मात्र तेनो ज (पोते मानेला
जिनदेवादिकनो ज) सेवक बनी रह्यो छे तेने तो नियमथी
पोताना आत्मकल्याणरूप कार्यनी सिद्धि थती नथी, तेथी ते
अज्ञानी मिथ्याद्रष्टि ज छे. कारण के
जेनाथी सर्वज्ञनी सत्तानो
ज निश्चय नथी करी शकायो तो (तेनाथी) स्वरूपनो निश्चयादि
तो केवी रीते थशे?
अहीं कोई कहे केसत्तानो निश्चय अमाराथी न थयो तो
शुं थयुं? ए देव तो साचा छे माटे पूजनादि करवां अफळ थोडां
ज जाय छे! तेनो उत्तर
जो तमारी किंचित् मंदकषायरूप
परिणति थई जशे तो पुण्यबंध तो थतो जशे; परंतु जिनमतमां
तो देवनां दर्शनथी आत्मदर्शनरूप फळ थवुं कह्युं छे ते तो
नियमथी सर्वज्ञनी सत्ता जाणवाथी ज थशे, अन्य प्रकारथी नहि
थाय, ए ज श्री प्रवचनसारमां कह्युं छे. वळी तमे लौकिक
कार्योमां तो एवा चतुर छो के वस्तुनां सत्ता आदि निश्चय कर्या
विना सर्वथा प्रवर्तता नथी; अने अहीं तमे सत्तानिश्चय पण
न करतां घेला (पागल) अनध्यवसायी थई प्रवर्तो छो ए मोटुं
आश्चर्य छे, माटे श्लोकवार्तिकमां (पानुं ९) कह्युं छे के
‘कथमनिश्चितसत्ताकः स्तुत्यः प्रेक्षावतां’...... आदि
अर्थःजेनी सत्तानो निश्चय नथी थयो ते