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[ सर्वज्ञ सत्तास्वरूप
त्यां तो संयोगरूपना कार्यरूप साधन द्वारा सर्वज्ञनी सत्ता सिद्ध
थई छे.
वळी, आ काळमां केवलज्ञानीनां प्रत्यक्ष दर्शन नथी पण
तेमनी १स्थापना २तदाकार वा ३अतदाकारनां दर्शन छे त्यां
पररूपकार्यना साधनथी सत्तानी सिद्धि थाय छे. ए प्रमाणे जे
सर्वज्ञनी सर्वथा नास्ति कहे छे तेने सर्वज्ञनी सत्ता जेम सिद्ध
थई छे तेम सत्ता सिद्ध करवानो उपाय (अहीं) दर्शाव्यो छे.
हवे जेने आत्मकल्याण करवुं छे तेणे प्रथम आवा उपायथी
वचननुं सत्यपणुं पोताना ज्ञानमां निर्णय करी पछी गम्यमान
थयेलां सत्यरूप साधनना बळथी उत्पन्न थयेलुं जे अनुमान,
तेनाथी सर्वज्ञनी सत्ता सिद्ध करी (तेनां) श्रद्धान, ज्ञान, दर्शन,
पूजन, भक्ति, स्तोत्र अने नमस्कारादिक करवा योग्य छे.
१. स्थापना = धातु, काष्ट, पाषाण वगेरेनी प्रतिमा तथा अन्य
पदार्थोमां ‘आ ते छे’ ए प्रकारे कोईनी कल्पना करवी, ते
स्थापना निक्षेप छे.
२. तदाकार स्थापना = जे पदार्थमां जेवो आकार होय तेमां तेवा
आकारवाळानी कल्पना करवी, ते तदाकार स्थापना छे. दा.त. श्री
सीमंधर भगवाननी प्रतिमामां श्री सीमंधर भगवाननी कल्पना
करवी.
३. अतदाकार स्थापना = भिन्न आकारवाळा पदार्थमां कोई भिन्न
आकारवाळानी कल्पना करवी, ते अतदाकार स्थापना छे. दा.त.
सेतरंजना गोटामां बादशाह वजीर वगेरेनी कल्पना करवी.