Sattasvarup-Gujarati (Devanagari transliteration).

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सर्वज्ञ सत्तास्वरूप ][ ९५
‘हेतुमत्तथ्यं सुत्रम्’
तो एवां सूत्रो, असर्वज्ञद्वेषवानवक्ता होतां केवी रीते
प्रवर्ते? जेम बृहस्पतिआदि नास्तिकवादीनां सूत्रो साचा वक्ता
विना ज प्रवर्ते छे तेवां जिनमतनां सूत्रो नथी. जिनशास्त्रोनां
वचनमां तो सुनिश्चितासंभवद्बाधकपणुं छे एटले ते तो
सत्यताने सिद्ध करे छे अने सत्यता छे ते आ वचनोना
सूत्रपणाने प्रगट करे छे तथा सूत्रपणुं छे ते सर्वज्ञवीतरागना
प्रणेतापणाने सिद्ध करे छे.
हवे, आ काळमां साचां वस्तुस्वरूप दर्शाववाळां वा
साचा मोक्षमार्गनां सूत्रो तो मळे ज छे पण जेना ज्ञानमां
जिनवचनना आगमनुं सेवन, युक्तिनुं अवलंबन, परंपरा
गुरुनो उपदेश तथा स्वानुभव ए द्वारा प्रमाण, नय, निक्षेप
अने
अनुयोगथी निश्चय थयो छे ते ज जीवोने ए वचननुं
साचुं सत्यपणुं भासे छे तथा तेने ज ए वचनो साचां सूत्ररूप
भासे छे अने तेने ज एवां सूत्रोने कहेवावाळा वक्ता
सर्वज्ञवीतरागदेव ज छे, एम भासे छे. ए प्रमाणे जे
भेदविज्ञानी जीव छे तेने ज ज्यां केवळीनुं प्रत्यक्ष दर्शन (छे)
* अर्थ :युक्तिवाळुं अने यथातथ्य (साचुं) होय ते सूत्र कहेवाय.
१. अनुयोग = वस्तुमां सूत्र अनुसारे सत्, संख्या वगेरे वस्तुनुं
स्वरूप जाणवाना कारणो योजवामां (उतारवामां) आवे छे, ते
दरेक साधनने अनुयोग कहे छे.
(जुओ तत्त्वार्थसूत्र प्र. अ. सूत्र ७८)