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[ सर्वज्ञ सत्तास्वरूप
तथा साचा वस्तुस्वरूपने वा जीवना कल्याणमार्गने
प्रतिपादन करवावाळां वचन छे, ते श्रीसर्वज्ञवीतरागवक्ताना
कह्याथी ज प्रवर्त्यां छे वात सिद्ध थई. ते ज श्री श्लोकवार्तिकमां
कह्युं छे केः —
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प्रबुद्धाशेषतत्त्वार्थे साक्षात् प्रक्षीणकल्मषे ।
सिद्धे मुनीन्द्रसंस्तुत्ये मोक्षमार्गस्य नेतरि ।।२।।
सत्यां तत्प्रतिपित्सायामुपयोगात्मकात्मनः ।
श्रेयसा योक्ष्यमाणस्य प्रवृत्तं सूत्रमादिमम् ।।३।।
(प्र. अ. पानुं ४)
अर्थ : — जाण्या छे सर्व पदार्थ जेणे, घात कर्यां छे
घातिकर्म जेणे तथा जे मुनींद्रोने स्तुति करवा योग्य – मोक्षमार्गने
दर्शाववावाळा छे, एवा वक्तानी सिद्धि थतां ज कल्याणकारीमां
जोडातो जे उपयोगस्वरूप आत्मा ने तेनी प्रतिपित्सा अर्थात्
पूछवारूप प्रवृत्ति थतां थकां आ सूत्रो प्रवर्त्यां छे. ते जिनमतनां
शास्त्रोमां युक्तिसहित सत्यपणुं होय छे, कारण के – जिनमतमां
सूत्रनुं लक्षण आ कह्युं छे के —
✽अर्थ : — समस्त तत्त्वार्थोना ज्ञाता, वीतराग अने मुनींद्रोथी
स्तुत्य एवा मोक्षमार्गना नेतानी (आप्तनी) सिद्धि थतां श्रेयमां
जोडावानी योग्यतावाळा उपयोगात्मक आत्माने मोक्षमार्गनी
जिज्ञासा थतां तत्त्वार्थसूत्रनुं प्रथम सूत्र (सम्यग्दर्शन-
ज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्गः) प्रवर्त्युं छे.