सत्तास्वरूप ][ ४५
मटाडवा माटे अन्य परद्रव्योना संबंधनी इच्छा थवी, तेनुं नाम
रोगाभावइच्छा छे.
ए प्रमाणे चार प्रकारनी इच्छा छे, तेमां (एक काळमां)
कोई एक ज इच्छानी प्रबलता रहे छे अने बाकीनी त्रण
इच्छाओनी गौणता रहे छे. जेम – मोह इच्छा प्रबल थाय तो
पुत्रादिकना माटे पोते परदेश जाय, त्यां भूख – तरस अने टाढ –
तप आदिनुं दुःख सहन करे, पोते भूख्यो रहे, पोतानुं मान –
मद गुमावीने पण कार्य करे छे, पोतानां अपमानादिक करावे
छे, छल आदि करे छे तथा धनादि खर्च करे छे, ए प्रमाणे
मोहइच्छा प्रबल रहेतां कषायइच्छा गौण रहे छे.
पोताना हिस्सानुं भोजन, वस्त्रादिक पुत्रादिक कुटुंबीओने
सारां सारां लावीने आपे छे, पोताने सूक्को – वासी खोराक मळे
तो पण खुश रहे छे तथा जे ते प्रकारथी पोताना भागने पण
जबरजस्तीथी आपीने तेमने खुश राखवा इच्छे छे, ए प्रमाणे
भोगइच्छानी पण गौणता रहे छे.
वळी, पोताना शरीरादिमां रोगादि कष्ट आवतां पण
पुत्रादिकना माटे परदेश जाय छे त्यां भूख – तरस – टाढ – ताप
आदिनी अनेक बाधाओ सहन करे छे, पोते भूख्यो रहीने पण
तेमने भोजनादिक खवडावे छे, पोते शीतकाळमां पण भीनां –
खरडायेलां शयन करीने पण तेमने सूका अने कोमळ बिस्त्रामां
(पथारीमां) सुवाडे छे, ए प्रमाणे रोगभावइच्छा गौण रहे छे.
ए प्रमाणे मोहइच्छानी प्रबलता थाय छे.