Sattasvarup-Gujarati (Devanagari transliteration).

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४४ ]
[ सत्तास्वरूप
भिन्नरूप परद्रव्य जे हस्तादि अंगरूप वा धन कुटुंब मंदिर
गाम आदिने पोतानां मानी तेने उत्पन्न करवा माटे वा संबंध
कायम बन्यो राखवा माटे उपाय करवा इच्छे छे, तथा ए
संबंध थई जतां सुखी थई मग्न थवुं वा तेना वियोगमां
दुःखी थवुं
शोक करवो अथवा एवो विचार आवे के मारे कोई
आगळपाछळ नथी, इत्यादिरूप आकुलता थवी तेनुं नाम
मोहइच्छा छे.
वळी, कोई परद्रव्यने अनिष्ट मानी तेने अन्यथा
परिणमाववानी, तेने बगाडवानी तथा तेनी सत्ताने नाश
करवानी इच्छा ते क्रोध छे. कोई परद्रव्यनुं उच्चपणुं अणगमतुं
लागे वा पोतानुं उच्चपणुं प्रगट थवा माटे परद्रव्यनी साथे द्वेष
करीने, तेने अन्यथा परिणमाववानी इच्छा थाय तेनुं नाम मान
छे. कोई परद्रव्यने इष्ट मानीने तेने उत्पन्न करवा अर्थे संबंध
बन्यो राखवा अर्थे वा विघ्न दूर करवा अर्थे जे छलकपटरूप
गुप्त कार्य करवानी इच्छा थवी तेने माया कहे छे, तथा अन्य
कोई परद्रव्यने इष्ट कल्पी तेनाथी संबंध मेळववानी वा तेनो
संबंध राखवानी इच्छा थवी ते लोभ छे. ए चारे प्रकारनी
प्रवृत्तिनुं नाम कषायइच्छा छे.
पांचइंद्रियोने व्हाला लागवावाळां जे परद्रव्यो, तेने
रतिरूप भोगववानी इच्छा थवी तेनुं नाम भोगइच्छा छे
तथाः
भूखतरस, शीतउष्ण आदि वा कामविकार आदिने