Sattasvarup-Gujarati (Devanagari transliteration).

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सत्तास्वरूप ][ ४३
आठकर्मना उदयथी उत्पन्न थयेली जे अवस्था ते रूप परिणमे
छे. त्यां भिन्न परद्रव्य, संयोगरूप परद्रव्य, विभाव परिणाम
तथा ज्ञेय
श्रुतना ज्ञानना षड्रूप (छ खंडरूप प्रकारना)
भावपर्यायना धर्म तेनी साथे अहंकारममकाररूप कल्पना
करी, परद्रव्योने मिथ्या इष्टअनिष्टरूप कल्पी, मोहराग
द्वेषने वशीभूत थई, कोई परद्रव्यने तो पोतारूप मानी ले छे.
(तथा कोई परद्रव्यने पररूप मानी ले छे). जेने इष्टरूप मानी
ले छे तेने ग्रहण करवा इच्छे छे तथा जेने पररूप
अनिष्ट
मानी ले छे तेने दूर करवा इच्छे छे, ए प्रमाणे आ जीवने
अनादिकाळथी एक इच्छारूप रोग अंतरंगमां शक्तिरूप
उत्पन्न थयो छे, तेना चार भेद छे. १ मोहइच्छा, २
कषायइच्छा, ३ भोगइच्छा, ४ रोगाभावइच्छा. त्यां ए
चारेमांथी प्रवृत्ति तो एक काळमां एकनी ज थाय छे, कोई
समये कोई इच्छानी थया ज करे छे.
त्यां मूळ तो मिथ्यात्वरूप मोहभाव एक साचा जैनी
विना सर्व संसारी जीवोने होय छे, ए प्रवृत्तिरूप चार
प्रकारनी इच्छानुं कार्य आ प्रमाणे थाय छेः
प्रथम मोहइच्छानुं कार्य आ प्रकारथी छेपोते तो
कर्मजनित पर्यायरूप बन्यो रहे, तेमां ज अहंकार लावतो रहे
के
हुं मनुष्य छुं, तिर्यंच छुं आदि, ए प्रमाणे जेवी जेवी
पर्याय थाय ते ते रूप ज पोते थयो प्रवर्ते छे, तथा जे
पर्यायमां पोते उत्पन्न थाय छे ते संबंधी संयोगरूप वा