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[ सत्तास्वरूप
ए साचामार्गने ग्रहण करे छे, तेमने पुण्यबंध थवाथी ए
पुण्योदयथी स्वर्गने पामे छे.
ए प्रमाणे जिनदेव, निःश्रेयस (मोक्ष) वा अभ्युदयरूप
(स्वर्गादिरूप) सुखने आपवावाळा छे. वळी तमे दुःखना हर्ता
वा विघ्नना नाशक जाणी जिनदेवने पूजो छो पण तमे दुःख
वा विघ्ननुं स्वरूप केवुं मानो छो ते कहो! जो तमे अनिष्ट
सामग्रीने दुःखनुं कारण मान्युं छे तो एवो नियम बतावो
के – ‘आ सामग्री सुखनुं कारण छे तथा आ सामग्री दुःखनुं
कारण छे.’’ के जेथी अमे सामग्रीने ज आधीन सुख – दुःख
मानीए, पण विचार करतां तो एवो नियम सर्वथा भासशे
नहि; कारण के —
जे सामग्री कोई काळमां, कोई जीवने, कोई क्षेत्रमां,
कोई अवस्थामां इष्ट लागे छे ते ज सामग्री अन्य
कालादिकमां अनिष्ट लागती जोवामां आवे छे, तेथी बाह्य
सामग्रीने आधीन सुख – दुःख मानवुं ए भ्रम छे. जेम कोई
पुण्यवानने अनेक इष्टसामग्री मळी छे छतां मूळ दुःख
टळतुं नथी, जो ए सामग्री मळतां दुःख दूर थई गयुं होय
तो ते अन्य सामग्री शा माटे अंगीकार करे छे? माटे तमे
दुःखनुं स्वरूप असत्य मानी राख्युं छे. सत्यस्वरूप आ
प्रमाणे छेः —
अज्ञानथी उत्पन्न थवावाळी इच्छा ज निश्चयथी दुःख
छे, ते तमने दर्शावीए छीए. आ संसारी जीव अनादिथी