सत्तास्वरूप ][ ४१
स्मरण करी, तेने स्वर्ग – मोक्षना दातार कहो तो तमारुं कहेवुं
सत्य ज छे. पण तेमने ज स्वर्ग – मोक्षना दातार जाणी पोते
निश्चित थई स्वछंदी बनी जे प्रवर्ते छे, तेने श्रीगोमट्टसारजीमां
१विनयमिथ्याद्रष्टि कह्यो छे.
वळी, तमे कहो छो के – ‘अमे तो भगवानने सुखस्वरूप
निर्णय कर्यो छे.’ पण तमे तो सुखनुं स्वरूप भोगसामग्रीनुं
मळवुं, नीरोगता अने धनादिकनी प्राप्ति थवी. एने मानो छो
पण ए सुख तो भोजनादिक, स्त्री आदिक, अन्य कुदेवादिक,
राज्यादिक तथा औषध आदिकथी ए थाय छे, परंतु विचार
करतां आकुळता नहि मटवाथी ए दुःख ज छे पण जे
सम्यग्ज्ञानपूर्वक निराकुळताजन्य सुख तेमनाथी थाय छे ते तमने
प्रतिभासित थयुं नथी वा तमने तेनी इच्छा नथी.
तमे ए देवनी पासे केवुं सुख इच्छे छो के जेथी तेने
कर्ता मानी पूजो छो? जेने तमे सुख मानो छो ते लौकिकसुख
तो तेमना दर्शन करवाथी – सेवक थवाथी तथा वचनो
सांभळवाथी थोडुं घणुं तो अवश्य प्राप्त थशे ज. माटे तमारे
सुखनो वा जे सुखना तेओ दातार छे तेनो निर्णय करी पूजवा
योग्य छे.
जेओ तेमना कहेला मार्गने पूर्ण प्रकारथी ग्रहण करे
छे ते तो साक्षात् मोक्षने प्राप्त थाय छे तथा जेओ एकदेशथी
१. विनयमिथ्याद्रष्टि = साचा तथा खोटा देव – गुरु तथा तेमना कहेला
शास्त्रोमां समानबुद्धि राखवावाळाने विनय मिथ्याद्रष्टि कहे छे.