Sattasvarup-Gujarati (Devanagari transliteration).

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सत्तास्वरूप ][ ४७
खातो नथी, सारां वस्त्रो पहेरतो नथी, सुगंधविलेपनादिक
लगावतो नथी, सुंदर रूपने देखतो नथी तथा सारा राग
सांभळतो नथी, मात्र एक धनादिकसामग्री उपजाववानी वात
करवानी ज बुद्धि रहे छे
कंजुस जेवो स्वभाव बनी जाय
छे. मायाकषाय तीव्र थतां सारुंसारुं खातो नथी, सारां
वस्त्रादिक पहेरतो नथी, सुगंधितवस्तुने सूंघतो नथी, सुंदर
रूपादिकने जोतो नथी, अने सुंदर रागादिकने सांभळतो नथी;
केवल अनेक प्रकारना छलकपटादि मायाचारना व्यवहार
करीने अन्यने ठगवानां ज कार्य कर्या करे छे, इत्यादि
प्रकारथी क्रोध
मान
मायालोभकषायनी प्रबलता थतां
भोगइच्छा गौण थई जाय छे तथा रोगाभावइच्छा पण
मंद पडी जाय छे.
वळी, ज्यारे भोगइच्छा प्रबल थई जाय छे त्यारे
पोताना पिता आदिने पण सारुं खवडावतो नथी, सुंदर
वस्त्रादिक पहेरावतो नथी, इत्यादि मात्र पोते ज सारी सारी
मीठाई बरफी आदि खावानी इच्छा करे छे, खाय छे, सुंदर
बारीक बहुमूल्यनां वस्त्रादिक पहेरे छे अने घरनां वा अन्य
कुटुंबादिकजनो भूखे मरतां रहे छे, ए प्रमाणे भोगइच्छा
प्रबल थतां मोहइच्छा गौण थई जाय छे.
सारुं खावुं, पहेरवुं, सूंघवुं, जोवुं, सांभळवुं वांछे छे
त्यां कोई बूरुं कहे तो पण क्रोध करतो नथी, पोताना
मानादिक कोई न करे तोपण तेने गणतो नथी, अनेक प्रकारनी