लगावतो नथी, सुंदर रूपने देखतो नथी तथा सारा राग
सांभळतो नथी, मात्र एक धनादिकसामग्री उपजाववानी वात
करवानी ज बुद्धि रहे छे
रूपादिकने जोतो नथी, अने सुंदर रागादिकने सांभळतो नथी;
केवल अनेक प्रकारना छलकपटादि मायाचारना व्यवहार
करीने अन्यने ठगवानां ज कार्य कर्या करे छे, इत्यादि
प्रकारथी क्रोध
मंद पडी जाय छे.
वस्त्रादिक पहेरावतो नथी, इत्यादि मात्र पोते ज सारी सारी
मीठाई बरफी आदि खावानी इच्छा करे छे, खाय छे, सुंदर
बारीक बहुमूल्यनां वस्त्रादिक पहेरे छे अने घरनां वा अन्य
कुटुंबादिकजनो भूखे मरतां रहे छे, ए प्रमाणे भोगइच्छा
प्रबल थतां मोहइच्छा गौण थई जाय छे.
मानादिक कोई न करे तोपण तेने गणतो नथी, अनेक प्रकारनी