Sattasvarup-Gujarati (Devanagari transliteration).

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४८ ]
[ सत्तास्वरूप
कपटाई करीने पण, दुःखो भोगवीने पण कार्य सिद्ध करवा
इच्छे छे तथा भोगइच्छानी प्राप्ति माटे धनादिक पण खर्चे
छे, ए प्रमाणे भोगइच्छा प्रबल थतां कषायइच्छा गौण थई
जाय छे.
सारुं खावुं, पहेरवुं, सूंघवुं, देखवुं अने सांभळवुं
आदि कार्य होवा छतां रोगादिकनुं थवुं भूखतरस आदि
कार्यो प्रत्यक्ष उत्पन्न थतां जाणवा छतां पण ते विषय
सामग्रीथी अरुचि थती नथी; जेम के
स्पर्शनइंद्रियनी प्रबल
इच्छाना वश थई हाथी खाडामां पडे छे. रसना इंद्रियना वश
थई माछली कांटामां भराई मरे छे. घ्राणइंद्रियना वश थई
भमरो कमळमां जीवन गुमावे छे, कर्णइंद्रियना वश थई मृग
शिकारीनी गोळीथी मरे छे तथा नेत्रइंद्रियना वश थई पतंग
दीपकमां प्राण होमे छे. ए प्रमाणे भोगइच्छा प्रबल थतां
रोगाभावइच्छा गौण थई जाय छे.
वळी, ज्यारे रोगाभावइच्छा प्रबल थाय छे त्यारे
कुटुंबादिकने छोडी दे छे, मंदिरमकान, पुत्रआदिने पण वेची
दे छे, इत्यादि रोगनी तीव्रता थतां मोह उत्पन्न थवाथी
कुटुंबादि संबंधीओमांथी पण मोहनो संबंध छूटी जाय छे तथा
अन्यथा परिणमे छे. ए प्रमाणे रोगाभावइच्छा प्रबल थतां
मोहइच्छा गौण थई जाय छे. तथाः
कोई बूरा कहो अने अपमानादिक करो छतां पण
अनेक छलपाखंड करीने वा धननुं खर्च करीने पण पोताना