Sattasvarup-Gujarati (Devanagari transliteration). Sarvagnya sattAswaroop.

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सर्वज्ञ सत्तास्वरूप ][ ५३
सर्वज्ञ सत्तास्वरुप
हवे श्री अर्हंतदेवनो निश्चय, पोताना ज्ञानमां थवानो
उपाय लखीए छीएःआ जीव अनादिथी मिथ्यादर्शन
अज्ञानकुचारित्रभावथी प्रवर्ततो थको चतुर्गतिरूप संसारमां
परिभ्रमण करे छे, त्यां कर्मना उदयथी उत्पन्न थयेली जे
असमानजातियद्रव्यपर्यायमां अहंबुद्धि धारी उन्मत्त बनी
विषयकषायआदि कार्यरूप प्रवर्ते छे. तेमां अनादिथी घणो
काळ तो नित्यनिगोदमां ज व्यतीत थयो वा पृथ्वी आदि
पर्यायोमां वा इतरनिगोदमां व्यतीत थयो. ए नित्य-
निगोदमांथी नीकळ्या पछी पांच
स्थावरमां उत्कृष्ट रहेवानो

१. असमानजातिद्रव्यपर्याय = भिन्न जातिवाळा द्रव्यो मळीने जे
एकरूप संयोग बने छे तेने असमानजातिद्रव्यपर्याय कहे छे.
दा.त. जीव अने पुद्गलो मळीने मनुष्यदेवादि अवस्थारूपे
एकरूप व्यवहार थाय छे ते.
२. निगोद = जे शरीरमां अनंतानंत जीवो एकी साथे रहे छे,
जन्मे छे अने मरे छे, ते शरीरने साधारण कहे छे अने तेमां
रहेता जीवोने निगोद के साधारण वनस्पतिकाय कहे छे.
३. स्थावर = (१) पृथ्वीकाय (२) अप्काय (३) तेउकाय (४)
वाउकाय (५) वनस्पतिकाय. ए पांच स्थावरना भेद छे.