Sattasvarup-Gujarati (Devanagari transliteration).

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[ सर्वज्ञ सत्तास्वरूप
काळ असंख्यात कल्पकाळ प्रमाण छे त्यां तो एक स्पर्शनइंद्रियनुं
ज किंचित् ज्ञान होय छे, हवे ए पर्यायोमां जे दुःख आ जीव
भोगवे छे तेने तो जे भोगववावाळो जीव छे ते ज जाणे छे
वा केवलीभगवान जाणे छे. कोई प्रकारथी कर्मनो क्षयोपशम
करी वा त्रस आदि प्रकृतिना उदयथी बे इंद्रिय, त्रण इंद्रिय,
चार इंद्रिय, असंज्ञीपंचेद्रिय तथा लब्ध्यपर्याप्तक पर्यायोमां
उत्पन्न थाय छे त्यां विशेषरूपथी दुःखनी ज सामग्री होय छे.
त्यां पण ज्ञाननी मंदता ज छे एटले ए पर्यायोमां तो
आत्महितकारी धर्मनो विचार थवानो पण सर्वथा अभाव छे.
बाकी तिर्यंचपर्याय रही, तेमां नानी
अवगाहना अने
अल्पआयुष्यवाळा जीवो तो घणा छे तथा मोटी अवगाहना
अने दीर्घआयुवाळा जीवो थोडा छे, तेमां सिंह, वाघ अने सर्प
आदि क्रूर जीवोमां तो धर्मनी वासना ज होती नथी, अने
कदाचित् कोई तिर्यंचने ए वासना होय तो घणुं करीने पूर्वनी
देवमनुष्योमांनी धर्मवासनाना बळथी थाय छे. वळी कोई जीवने
लब्धिना बळथी उपदेशादिकनुं
निमित्त पामतां वर्तमान तिर्यंच
संज्ञीपर्याप्तक गर्भज मोटी अवगाहना वा दीर्घ आयुना धारक
बळद अने हरणादि जीवोने उत्पन्न थाय छे, परंतु एवा जीव
घणा थोडा छे.
नरकपर्याय दुःखमय ज छे त्यां धर्मावासनादिनुं उत्पन्न
१. अवगाहना = शरीरनी उंचाई.
२. निमित्त = हाजरीरूप बाह्यसंयोग.