Sattasvarup-Gujarati (Devanagari transliteration).

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सर्वज्ञ सत्तास्वरूप ][ ५५
थवुं महा दुर्लभ छे, कोई जीवने मनुष्य-तिर्यंच पर्यायोमां
थयेली वासना किंचित् रही जाय तो ते बनी रहे छे.
देवपर्यायमां घणा देव तो भवनत्रय अर्थात्भवनवासी,
व्यंतर अने ज्योतिषिओमां हलका पदना धारक छे, तेमने तो
मिथ्यात्व, विषयकषाय अने भोगोपभोगसामग्री आदिनो
विषयरूपथी अनुराग होय छे, तेथी घणा जीव तो त्यांथी मरीने
एकेन्द्रिय थाय छे, तथा कोई उच्चपदना धारक जीव तो प्रथम
मनुष्यपर्यायमां धर्म साध्यो छे तेना ज फलथी थाय छे, पण
एवा जीव थोडा होय छे.
मनुष्यपर्यायमां घणा जीव तो लब्ध्यपर्याप्तक छे तेमनुं
श्वासना अढारमा भागप्रमाण आयुष्य छे, कारण के संसारी
जीवराशिमां सर्व मनुष्य ओगणत्रीस अंकप्रमाण छे, तेथी
एकेंद्रियादि सर्व जीवराशिथी (तेओ) अत्यंत थोडी संख्यामात्र
छे. त्यां पण घणा जीव तो भोगभूमिया छे. एटले त्यां तो
देवआदिनो वा धर्मकार्योनो संबंध ज नथी. वळी कर्मभूमिमां
घणा जीव तो गर्भमां ज अल्पआयुना धारक मरता जोईए
छीए तथा कदाचित् गर्भमां पूर्ण अवस्था थाय तो जन्म थया
पछी घणा जीव अल्पआयुना धारक मरता जोईए छीए, वळी
कोई दीर्घ आयुष्य पामे तो उच्चकुल पामवुं महा दुर्लभ छे,
तेनाथी पांचे इंद्रियोनी पूर्णता पामवी वा शरीरादि सर्व सामग्री
उत्तम पामवी महा दुर्लभ छे, तेनाथी उत्तम संगतिनो संबंध
मळवो वा व्यसनादिकथी बच्या रहेवुं महा दुर्लभ छे, तेनाथी