Sattasvarup-Gujarati (Devanagari transliteration).

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सर्वज्ञ सत्तास्वरूप ][ ७५
आगमप्रमाणमां तो सर्वज्ञवचनना आश्रयथी वस्तुनुं स्वरूप
जाणी लेवानुं होय छे. पण जिनमतमां तो आवी आम्नाय
नथी, जिनमतमां तो आ आम्नाय छे के
वस्तुनां नामादिक अने
लक्षणादिक तो आगमना श्रवण द्वारा ज जाणे पछी
मोक्षमार्गमां प्रयोजनभूत जे आप्त
आगमपदार्थादिक तेना
स्वरूपने तो आगमथी ज सांभळी प्रतीतिमां लावे, तेनुं तो
प्रत्यक्ष
अनुमान द्वारा निर्णयथी ‘आगममां लख्युं छे’ ए साचुं
मानवुं. हवे मूळ प्रयोजनभूत रकम जे अर्हंतसर्वज्ञ तेने (मात्र)
आगमना सांभळवाथी ज प्रतीतिमां लावी जे संतोष मानी ले
छे. ते पण अज्ञानी मिथ्याद्रष्टि ज छे. कारण के
अर्हंत
सर्वज्ञनो निश्चय थवामां (मात्र) आगमप्रमाणनो अधिकार
नथी. कह्युं छे केः
प्रत्यक्षानुमानागमैः परीक्षणमत्र विचारः
(श्लोकवार्तिक पानुं८ लीटी १३.)
अर्थःप्रत्यक्षअनुमानना आश्रय सहित आगममां
लखेली प्रयोजनभूत रकमनी परीक्षा करवी तेनुं नाम विचार
छे. जे सर्वज्ञनुं स्वरूप छे ते तो मूळ प्रयोजनभूत रकम छे,
माटे परीक्षा कर्या सिवाय केवल आगमना आश्रयथी ज तेनी
प्रतीति करतां नियमथी प्रयोजननी सिद्धि थाय नहि. माटे जो
सर्वज्ञदेवनो निश्चय करवो छे तो पहेलां तेनां नाम
लक्षणादिक
अर्थ :प्रत्यक्ष अनुमान अने आगम वडे परीक्षा करवी, तेनुं
नाम अत्रे विचार कह्यो छे.