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[ सर्वज्ञ सत्तास्वरूप
साधनथी ज सिद्ध थशे पण अन्य प्रकारथी नहि सिद्ध थाय एवा
नियमरूप सहचारीपणाने जाणवुं, तेनुं नाम तर्क प्रमाण छे.
१२. चार दोषो रहित साधनथी साध्यने जाणवुं; ज्यां
साध्य तो असिद्ध होय – साधनगम्य न (थयुं) होय – त्यां
गम्यमान साधन जे तर्क तेनाथी निश्चय कर्यो होय ते वडे
असिद्ध – साध्यने जाणवुं, तेनुं नाम अनुमानप्रमाण छे.
१३. प्रत्यक्ष – अनुमानअगोचर – वस्तुनो केवलीसर्वज्ञना
वचनआश्रयथी ज पदार्थनो निर्णय करवो, ते आगमप्रमाण छे.
त्यां आ समय आ दुःषमपंचमकालमां केवलज्ञान,
मनःपर्ययज्ञान तथा अवधिज्ञान ए त्रण ज्ञान तो आ क्षेत्रमां
छे ज नहि तथा पांच इंद्रियज्ञानमां सर्वज्ञनुं स्वरूप ग्रहणमां
आवतुं नथी, मात्र नेत्रथी तेमनी प्रतिमाजीनो वर्ण वा आकार
वा आसनादिक तो देखाय छे पण (तेथी) जे सर्वज्ञनुं
सत्तास्वरूप ज्ञान. ते तो नियमथी जाणी शकातुं नथी, वळी
मनमां स्मृतिप्रमाण तो त्यारे थाय के ज्यारे पूर्वमां जाण्युं होय
तो याद आवे, पण जेने पूर्वमां तेनुं ज्ञान ज न थयुं होय तेने
स्मृतिप्रमाण केवी रीते उपजे? तथा आगळ
– प्रथम जाण्युं होय
तेने वर्तमानमां सपक्ष – विपक्ष द्वारा जाणीने सद्रश
१विसद्रशपणानुं जोडरूप ज्ञान थाय, पण जेणे पूर्वमां सर्वज्ञ
जाण्या ज नथी, वर्तमानमां पण जाण्या नथी तथा जोडरूपज्ञान
जेने थयुं नथी, तेने प्रत्यभिज्ञान पण केवी रीते थाय? वळी
१. विसद्रशपणुं = असमानपणुं