Sattasvarup-Gujarati (Devanagari transliteration).

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सर्वज्ञ सत्तास्वरूप ][ ७३
४. मन अने पांचे इंद्रियोथी जे ज्ञान थाय छे तेने
सांव्यवहारीकज्ञान कहे छे, ते (ज्ञान), पुद्गलना अनंतानंत
परमाणुओना
बादर स्कंधने पोतपोताना विषयनी मर्यादा
सहित एककाळमां एक ज्ञेयने किंचित् स्पष्टरूप जाणे छे, त्यां
स्पर्शनइंद्रिय तो पोताना आठ (स्पर्शरूप) विषयोने जाणे छे.
५. रसना इंद्रिय, पांच रसोने जाणे छे.
६. घ्राणइंद्रिय, सुगंध
दुर्गंधरूप जे बे प्रकारना गंध छे
तेने जाणे छे.
७. नेत्रइंद्रिय, पांच प्रकारना वर्णोने जाणे छे.
८. श्रोत्र (कर्ण) इंद्रिय, सातप्रकारना स्वरोने जाणे छे.
९. हवे पांच
परोक्ष (ज्ञान)ना भेदोने कहे छे, त्यां
पूर्वमां जाणेली वस्तु याद आववी ते स्मृतिज्ञान छे.
१०. पूर्वमां जाणेली वस्तुनुं वर्तमानमां जाणेला ज्ञेयथी
बंने काळना सद्रशपणापूर्वक जोडरूप जे ज्ञान थवुं तेनुं नाम
प्रत्यभिज्ञान छे.
११. साध्यसाधननी व्याप्ति अर्थात् आ साध्य, आ
१. बादर = स्थूळ.
२. स्कंध = परमाणुनो जथ्थो.
३. परोक्षज्ञान = जे बीजानी सहायताथी पदार्थने अस्पष्ट जाणे.
४. सद्रशपणुं = समानपणुं, सरखापणुं.