Shastra Swadhyay-Gujarati (Devanagari transliteration). Bol.

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श्री दिगंबर जैन स्वाध्यायमंदिर टस्ट, सोनगढ -
जीव परद्रव्यनी क्रिया तो करतो नथी, परंतु
विकारकाळे पण स्वभाव-अपेक्षाए निर्विकार रहे छे,
अपूर्ण दशा वखते पण परिपूर्ण रहे छे, सदाशुद्ध छे,
कृतकृत्य भगवान छे. जेम रंगित दशा वखते
स्फटिकमणिना विद्यमान निर्मळ स्वभावनुं भान थई
शके छे, तेम विकारी, अधूरी दशा वखते पण जीवना
विद्यमान निर्विकारी, परिपूर्ण स्वभावनुं भान थई शके
छे. आवा शुद्धस्वभावना अनुभव विना मोक्षमार्गनो
प्रारंभ पण थतो नथी, मुनिपणुं पण नरकादिनां
दुःखोना डरथी के बीजा कोई हेतुए पळाय छे. ‘हुं
कृतकृत्य छुं, परिपूर्ण छुं, सहजानंद छुं, मारे कांई
जोईतुं नथी’ एवी परम उपेक्षारूप, सहज
उदासीनतारूप, स्वाभाविक तटस्थतारूप मुनिपणुं
द्रव्यस्वभावना अनुभव विना कदी आवतुं नथी.
आवा शुद्धद्रव्यस्वभावना
ज्ञायकस्वभावना निर्णयना
पुरुषार्थ प्रत्ये, तेनी लगनी प्रत्ये वळवानो प्रयास
आत्मार्थीओए
भवभ्रमणथी मूंझायेला मुमुक्षुओए
करवा जेवो छे.
पूज्य गुरुदेवश्री कानजीस्वामी