श्री दिगंबर जैन स्वाध्यायमंदिर टस्ट, सोनगढ -
स्वानुभूति प्राप्त करवा जीवे शुं करवुं?
स्वानुभूतिनी प्राप्ति माटे ज्ञानस्वभावी आत्मानो
गमे तेम करीने पण द्रढ निर्णय करवो. ज्ञानस्वभावी
आत्मानो निर्णय द्रढ करवामां सहायभूत तत्त्वज्ञाननो —
द्रव्योनुं स्वयंसिद्ध सत्पणुं ने स्वतंत्रता, द्रव्य-गुण-पर्याय,
उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य, नव तत्त्वनुं साचुं स्वरूप, जीव अने
शरीरनी तद्दन भिन्नभिन्न क्रियाओ, पुण्य अने धर्मना
लक्षणभेद, निश्चय-व्यवहार इत्यादि अनेक विषयोना
साचा बोधनो — अभ्यास करवो. तीर्थंकर भगवंतोए
कहेलां आवां अनेक प्रयोजनभूत सत्योना अभ्यासनी
साथे साथे सर्व तत्त्वज्ञाननो शिरमोर — मुगटमणि जे
शुद्धद्रव्य-सामान्य अर्थात् परम पारिणामिकभाव एटले के
ज्ञायकस्वभावी शुद्धात्मद्रव्यसामान्य — जे स्वानुभूतिनो
आधार छे, सम्यग्दर्शननो आश्रय छे, मोक्षमार्गनुं
आलंबन छे, सर्व शुद्धभावोनो नाथ छे — तेनो दिव्य
महिमा हृदयमां सर्वाधिकपणे अंकित करवा योग्य छे. ते
निज शुद्धात्मद्रव्यसामान्यनो आश्रय करवाथी ज
अतीन्द्रिय आनंदमय स्वानुभूति प्राप्त थाय छे.
— पूज्य गुरुदेवश्री कानजीस्वामी