Shastra Swadhyay-Gujarati (Devanagari transliteration). 5. parmArth pratikramaN adhikAr.

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श्री दिगंबर जैन स्वाध्यायमंदिर टस्ट, सोनगढ -
घनघातिकर्म विहीन ने चोत्रीश अतिशय युक्त छे,
कैवल्यज्ञानादिक परमगुण युक्त श्री अर्हंत छे. ७१.
छे अष्ट कर्म विनष्ट, अष्ट महागुणे संयुक्त छे,
शाश्वत, परम ने लोक-अग्रविराजमान श्री सिद्ध छे. ७२.
परिपूर्ण पंचाचारमां, वळी धीर गुणगंभीर छे,
पंचेन्द्रिगजना दर्पदलने दक्ष श्री आचार्य छे. ७३.
रत्नत्रये संयुक्त ने निःकांक्षभावथी युक्त छे,
जिनवरकथित अर्थोपदेशे शूर श्री उवझाय छे. ७४.
निर्ग्रंथ छे, निर्मोह छे, व्यापारथी प्रविमुक्त छे,
चौविध आराधन विषे नित्यानुरक्त श्री साधु छे. ७५.
आ भावनामां जाणवुं चारित्र नय व्यवहारथी;
आना पछी भाखीश हुं चारित्र निश्चयनय थकी. ७६.
५. परमार्थ-प्रतिक्रमण अधिकार
नारक नहीं, तिर्यंच-मानव-देवपर्यय हुं नहीं;
कर्ता न, कारयिता न, अनुमंता हुं कर्तानो नहीं. ७७.
हुं मार्गणास्थानो नहीं, गुणस्थान-जीवस्थानो नहीं;
कर्ता न, कारयिता न, अनुमंता हुं कर्तानो नहीं. ७८.
हुं बाळ-वृद्ध-युवान नहि, हुं तेमनुं कारण नहीं;
कर्ता न, कारयिता न, अनुमंता हुं कर्तानो नहीं. ७९.
हुं राग-द्वेष न, मोह नहि, हुं तेमनुं कारण नहीं;
कर्ता न, कारयिता न, अनुमंता हुं कर्तानो नहीं. ८०.
श्री नियमसार-पद्यानुवाद ]
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