श्री दिगंबर जैन स्वाध्यायमंदिर टस्ट, सोनगढ -
निरपेक्ष भावन सहित सर्व परिग्रहोनो त्याग जे,
ते जाणवुं व्रत पांचमुं चारित्रभर वहनारने. ६०.
अवलोकी मार्ग धुराप्रमाण करे गमन मुनिराज जे
दिवसे ज प्रासुक मार्गमां, ईर्यासमिति तेहने. ६१.
निजस्तवन, परनिंदा, पिशुनता, हास्य, कर्कश वचनने
छोडी स्वपरहित जे वदे, भाषासमिति तेहने. ६२.
अनुमनन-कृत-कारितविहीन, प्रशस्त, प्रासुक अशनने
— परदत्तने मुनि जे ग्रहे, एषणसमिति तेहने. ६३.
शास्त्रादि ग्रहतां-मूकतां मुनिना प्रयत परिणामने
आदाननिक्षेपण समिति कहेल छे आगम विषे. ६४.
जे भूमि प्रासुक, गूढ ने उपरोध ज्यां परनो नहीं,
मळत्याग त्यां करनारने समिति प्रतिष्ठापन तणी. ६५.
कालुष्य, संज्ञा, मोह, राग, द्वेष आदि अशुभना
परिहारने मनगुप्ति छे भाखेल नय व्यवहारमां. ६६.
स्त्री-राज-भोजन-चोरकथनी हेतु छे जे पापनी
तसु त्याग, वा अलीकादिनो जे त्याग, गुप्ति वचननी. ६७.
वध, बंध ने छेदनमयी, विस्तरण-संकोचनमयी
इत्यादि कायक्रिया तणी निवृत्ति तनगुप्ति कही. ६८.
मनमांथी जे रागादिनी निवृत्ति ते मनगुप्ति छे;
अलीकादिनी निवृत्ति अथवा मौन वाचागुप्ति छे. ६९.
जे कायकर्मनिवृत्ति कायोत्सर्ग ते तनगुप्ति छे;
हिंसादिनी निवृत्तिने वळी कायगुप्ति कहेल छे. ७०.
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[ शास्त्र-स्वाध्याय