Shastra Swadhyay-Gujarati (Devanagari transliteration). 9. param samAdhi adhikAr.

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श्री दिगंबर जैन स्वाध्यायमंदिर टस्ट, सोनगढ -
कायादि परद्रव्यो विषे स्थिरभाव छोडी आत्मने
ध्यावे विकल्पविमुक्त, कायोत्सर्ग छे ते जीवने. १२१.
९. परम-समाधि अधिकार
वचनोच्चरणकिरिया तजी, वीतराग निज परिणामथी
ध्यावे निजात्मा जेह, परम समाधि तेने जाणवी. १२२.
संयम, नियम ने तप थकी, वळी धर्म-शुक्लध्यानथी,
ध्यावे निजात्मा जेह, परम समाधि तेने जाणवी. १२३.
वनवास वा तनक्लेशरूप उपवास विधविध शुं करे?
रे! मौन वा पठनादि शुं करे साम्यविरहित श्रमणने? १२४.
सावद्यविरत, त्रिगुप्त छे, इन्द्रियसमूह निरुद्ध छे,
स्थायी समायिक तेहने भाख्युं श्री केवळीशासने. १२५.
स्थावर अने त्रस सर्व भूतसमूहमां समभाव छे,
स्थायी समायिक तेहने भाख्युं श्री केवळीशासने. १२६.
संयम, नियम ने तप विषे आत्मा समीप छे जेहने,
स्थायी समायिक तेहने भाख्युं श्री केवळीशासने. १२७.
नहि राग अथवा द्वेषरूप विकार जन्मे जेहने,
स्थायी समायिक तेहने भाख्युं श्री केवळीशासने. १२८.
जे नित्य वर्जे आर्त तेम ज रौद्र बन्ने ध्यानने,
स्थायी समायिक तेहने भाख्युं श्री केवळीशासने. १२९.
जे नित्य वर्जे पुण्य तेम ज पाप बन्ने भावने,
स्थायी समायिक तेहने भाख्युं श्री केवळीशासने. १३०.
९६ ]
[ शास्त्र-स्वाध्याय