श्री दिगंबर जैन स्वाध्यायमंदिर टस्ट, सोनगढ -
जे नित्य वर्जे हास्यने, रति अरति तेम ज शोकने,
स्थायी समायिक तेहने भाख्युं श्री केवळीशासने. १३१.
जे नित्य वर्जे भय जुगुप्सा, वर्जतो सौ वेदने,
स्थायी समायिक तेहने भाख्युं श्री केवळीशासने. १३२.
जे नित्य ध्यावे धर्म तेम ज शुक्ल उत्तम ध्यानने,
स्थायी समायिक तेहने भाख्युं श्री केवळीशासने. १३३.
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१०. परम-भक्ति अधिकार
श्रावक श्रमण सम्यक्त्व-ज्ञान-चरित्रनी भक्ति करे,
निर्वाणनी छे भक्ति तेने एम जिनदेवो कहे. १३४.
वळी मोक्षगत पुरुषो तणो गुणभेद जाणी तेमनी
जे परम भक्ति करे, कही शिवभक्ति त्यां व्यवहारथी. १३५.
शिवपंथ स्थापी आत्मने निर्वाणनी भक्ति करे,
ते कारणे असहायगुण निज आत्मने आत्मा वरे. १३६.
रागादिना परिहारमां जे साधु जोडे आत्मने,
छे योगभक्ति तेहने; कई रीत संभव अन्यने ? १३७.
सघळा विकल्प अभावमां जे साधु जोडे आत्मने,
छे योगभक्ति तेहने; कई रीत संभव अन्यने ? १३८.
विपरीत आग्रह छोडीने, जैनाभिहित तत्त्वो विषे
जे जीव जोडे आत्मने, निज भाव तेनो योग छे. १३९.
वृषभादि जिनवर ए रीते करी श्रेष्ठ भक्ति योगनी,
शिवसौख्य पाम्या; तेथी कर तुं भक्ति उत्तम योगनी. १४०.
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श्री नियमसार-पद्यानुवाद ]
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