Shastra Swadhyay-Gujarati (Devanagari transliteration). SamaysAr Puravrang.

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श्री दिगंबर जैन स्वाध्यायमंदिर टस्ट, सोनगढ -
श्री
समयसार
(पद्यानुवाद)
पूर्वरंग
(हरिगीत)
ध्रुव, अचल ने अनुपम गति पामेल सर्वे सिद्धने
वंदी कहुं श्रुतकेवळी-भाषित आ समयप्राभृत अहो! १.
जीव चरित-दर्शन-ज्ञानस्थित स्वसमय निश्चय जाणवो;
स्थित कर्मपुद्गलना प्रदेशे परसमय जीव जाणवो. २.
एकत्वनिश्चय-गत समय सर्वत्र सुंदर लोकमां;
तेथी बने विखवादिनी बंधनकथा एकत्वमां. ३.
श्रुत-परिचित-अनुभूत सर्वने कामभोगबंधननी कथा;
परथी जुदा एकत्वनी उपलब्धि केवळ सुलभ ना. ४.
दर्शावुं एक विभक्त ए, आत्मा तणा निज विभवथी;
दर्शावुं तो करजो प्रमाण, न दोष ग्रह स्खलना यदि. ५.
नथी अप्रमत्त के प्रमत्त नथी जे एक ज्ञायक भाव छे,
ए रीत ‘शुद्ध’ कथाय, ने जे ज्ञात ते तो ते ज छे. ६.
चारित्र, दर्शन, ज्ञान पण व्यवहार-कथने ज्ञानीने;
चारित्र नहि, दर्शन नहीं, नहि ज्ञान, ज्ञायक शुद्ध छे. ७.