Shastra Swadhyay-Gujarati (Devanagari transliteration).

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श्री दिगंबर जैन स्वाध्यायमंदिर टस्ट, सोनगढ -
बहु वार काळ अनादिथी पार्श्वस्थ-आदिक भावना
तें भावीने दुर्भावनात्मक बीजथी दुःखो लह्यां. १४.
रे! हीन देव थई तुं पाम्यो तीव्र मानस दुःखने,
देवो तणा गुणविभव, ॠद्धि, महात्म्य बहुविध देखीने. १५.
मदमत्त ने आसक्त चार प्रकारनी विकथा महीं,
बहुशः कुदेवपणुं लह्युं तें, अशुभ भावे परिणमी. १६.
हे मुनिप्रवर! तुं चिर वस्यो बहु जननीना गर्भोपणे
निकृष्टमळभरपूर, अशुचि, बीभत्स गर्भाशय विषे. १७.
जन्मो अनंत विषे अरे! जननी अनेरी अनेरीनुं
स्तनदूध तें पीधुं महायश! उदधिजळथी अति घणुं. १८.
तुज मरणथी दुःखार्त बहु जननी अनेरी अनेरीनां
नयनो थकी जळ जे वह्यां ते उदधिजळथी अति घणां. १९.
निःसीम भवमां त्यक्त तुज नख-नाळ-अस्थि-केशने
सुर कोई एकत्रित करे तो गिरिअधिक राशि बने. २०.
जल-थल-अनल-पवने, नदी-गिरि-आभ-वन-वृक्षादिमां
वण आत्मवशता चिर वस्यो सर्वत्र तुं त्रण भुवनमां. २१.
भक्षण कर्यां तें लोकवर्ती पुद्गलोने सर्वने,
फरी फरी कर्यां भक्षण छतां पाम्यो नहीं तुं तृप्तिने. २२.
पीडित तृषाथी तें पीधां छे सर्व त्रिभुवननीरने,
तोपण तृषा छेदाई ना; चिंतव अरे! भवछेदने. २३.
१. बहुशः = अनेक वार.२. उदधिजळ = समुद्रनुं पाणी.
३. गिरिअधिक राशि = पर्वतथी पण वधु मोटो ढगलो.
४. त्रिभुवननीर = त्रण लोकनुं बधुं पाणी.
५. भवछेद = भवनो नाश.
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